Mohammad hidayatullah biography | मोहम्मद हिदायतुल्लाह की जीवनी
Mohammad hidayatullah biography
मुहम्मद हिदायतुल्लाह का प्रारंभिक जीवन
17 दिसंबर, 1905 को जन्में भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हिदायतुल्लाह का जन्म ब्रिटिश आधीन लखनऊ के प्रसिद्ध खान बहादुर हाफिज मोहम्मद विलायतुल्लाह के परिवार में हुआ था. इनके पिता उर्दू भाषा के एक प्रख्यात कवि थे.
इनके दादा श्री मुंशी कुदरतुल्लाह बनारस में वकील थे जबकि इनके पिता ख़ान बहादुर हाफ़िज विलायतुल्लाह आई.एस.ओ. मजिस्ट्रेट मुख्यालय में तैनात थे। इनके पिता काफ़ी प्रतिभाशाली थे और प्रत्येक शैक्षिक इम्तहान में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते थे।
इनके पिता हाफ़िज विलायतुल्लाह 1928 में भाण्डरा से डिप्टी कमिश्नर एवं डिस्ट्रिक्ट के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। मुहम्मद हिदायतुल्लाह के दो भाई और एक बहन थी। उनमें सबसे छोटे यही थे।
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मुहम्मद हिदायतुल्लाह की माता का नाम मुहम्मदी बेगम था जिनका ताल्लुक मध्य प्रदेश के एक धार्मिक परिवार से था, जो हंदिया में निवास करता था। मुहम्मद हिदायतुल्लाह की माता का निधन 31 जुलाई, 1937 को हुआ था।
उन्होंने 1922 में रायपुर के गवर्नमेंट हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद नागपुर के मोरिस कॉलेज में दाखिला लिया जहां 1926 में उन्हें फिलिप छात्रवृत्ति के लिए नामित किया गया.
वर्ष 1927 में कानून की पढ़ाई संपन्न करने के लिए हिदायतुल्लाह कैंम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज गए. अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया.
सरकारी सेवा में रहते हुए ब्रिटिश सरकार ने श्री हिदायतुल्लाह के पिता को ख़ान बहादुर की उपाधि, केसरी हिन्द पदक, भारतीय सेवा सम्मान और सेंट जोंस एम्बुलेंस का बैज प्रदान किया था।
इनके पिता अखिल भारतीय स्तर के कवि भी थे और मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही इन्हें विद्वत्ता की प्रतीक मुस्लिम पदवी हाफ़िज की प्राप्ति हो गई थी। उन्होंने फ़ारसी एवं उर्दू भाषा में कविताएँ लिखी।
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मुंबई के कुतुब प्रकाशन ने इनकी कविताओं का संग्रह ‘सोज-ए-गुदाज’ के नाम से प्रकाशित किया था। इनके पिता की दूसरी पुस्तक ‘तामीर-ए-हयात’ शीर्षक से प्रकाशित हुई, जो गंभीर दार्शनिक पद्य रूप में थी।
हिदायतुल्लाह के पिता 6 वर्षों तक विधायिका परिषद के सदस्य भी रहे। मुहम्मद हिदायतुल्लाह के पिता का निधन नवम्बर, 1949 को हुआ था।
ट्रिनिटी से पढ़ाई पूरी कर भारत लौटने के बाद मोहम्मद हिदायतुल्लाह मध्य प्रांत के उच्च न्यायालय और बरार, नागपुर के एडवोकेट जनरल नियुक्त हुए. बरार और मध्य प्रांत का विलय होने के बाद जब मध्य प्रदेश का निर्माण किया गया तब मोहम्मद हिदायतुल्लाह उच्च न्यायालय के एडवोकेट जनरल बनाए गए.
उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश बन जाने तक वह इस पद पर रहे. 1946 में मोहम्मद हिदायतुल्लाह नागपुर उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त हुए. बाद में वह नागपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए.
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नवंबर 1956 में वह मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी बने. 1958 में मोहम्मद हिदायतुल्लाह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनाए गए. दस वर्ष तक इस पद पर रहने के बाद हिदायतुल्लाह सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए.
मोहम्मद हिदायतुल्लाह 25 फ़रवरी 1968 से 16 दिसंबर 1970 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे। उन्होंने कुछ समय के लिए देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में भी कार्य किया। सेवानिवृत्ति के बाद वह भारत के उप-राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित किये गए थे। वह भारत के छठे उपराष्ट्रपति थे।
कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने के बाद भी श्री वी वी गिरी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन इसके लिए वह कार्यवाहक राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पद का त्याग करके ही उम्मीदवार बन सकते थे।
ऐसी स्थिति में दो सवैधानिक प्रश्न उठ खड़े हुए जिसके बारे में संविधान में कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। प्रथम प्रश्न यह था की कार्यवाहक राष्ट्रपति रहते हुए श्री वी वी गिरी अपना त्यागपत्र किसे सुपुर्द करें और द्वितीय प्रश्न था कि वह किस पद का त्याग करें.
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उपराष्ट्रपति पद अथवा कार्यवाहक राष्ट्रपति का? तब वी वी गिरी ने विशेषज्ञ से परामर्श कर के उपराष्ट्रपति पद से 20 जुलाई 1969 को दिन के 12:00 बजे के पूर्व अपना त्याग पत्र दे दिया यह त्यागपत्र भारत के राष्ट्रपति को संबोधित किया गया था।
ग्रेजुएशन के बाद, हिदायतुल्लाह भारत वापिस आए और उन्होंने खुद को 19 जुलाई 1930 को नागपुर के बरार और मध्य भारत के हाई कोर्ट में अधिवक्ता के रूप में दाखिल करवाया।
इसके बाद नागपुर यूनिवर्सिटी में उन्होंने लॉ भी पढाया और इंग्लिश साहित्य का ज्ञान भी उन्हें था। 12 दिसम्बर 1942 को नागपुर के हाई कोर्ट में उनकी नियुक्ती सरकारी वकील के रूप में की गयी थी।
2 अगस्त 1943 को वे वर्तमान मध्यप्रदेश के अधिवक्ता बने और फिर कुछ समय बाद 1946 में उनकी नियुक्ती हाई कोर्ट के अतिरिक्त जज के रूप में की गयी थी। उस समय मध्य प्रदेश के सबसे युवा अधिवक्ता के रूप में वे प्रसिद्ध थे।
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1956 तक एम हिदायतुल्लाह नागपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पद पर थे। इसके पूर्व यह स्कूल कोड कमेटी और कोर्ट फी रिवीजन कमेटी के प्रभारी भी रहे। 1 नवम्बर 1956 को जब राज्यों के पुनर्गठन का कार्य सम्पन्न हुआ तो उन्हें जबलपुर (मध्य प्रदेश) उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
1954 में वे हाई कोर्ट के सबसे कम उम्र के मुख्य न्यायाधीश भी बने। लेकिन इनके जीवन को सर्वोच्चता प्रदान करने वाला सौभाग्यशाली दिन तो 25 फरवरी 1968 का था, जब यह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने।
एक जज के रूप में हिदायतुल्लाह के कार्यकाल का आरंभ 24 जून 1946 से आरंभ हुआ जो 16 दिसम्बर 1970 तक जारी रहा। 1971 में इन्होंने बेलग्रेड में विश्व के जजों की असेम्बली में शिरकत की।
रवीन्द्रनाथ टैगोर और पण्डित नेहरू के बाद इन्हें ही नाइट ऑफ मार्क ट्वेन की उपाधि 1972 में अमेरिका की ‘इंटरनेशनल मार्क ट्वेन सोसाइटी’ ने प्रदान की।
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भारत के ज्ञानी संविधान निर्माताओं ने राष्ट्रपति निर्वाचन के संबंध में तो आवश्यक नियम बनाए थे, लेकिन उन्होंने एक भूल कर दी थी।
28 मई 1969 को संसद की सभा आहूत की गई और अधिनियम 16 के अंतर्गत यह क़ानून बनाया गया कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों की अनुपस्थिति में भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा इनकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण कराई जा सकती है।
कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने से पूर्व एम हिदायतुल्लाह को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद छोड़ना पड़ा था। तब उस पद पर जेसी शाह को नया कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था।
हिदायतउल्लाह का पहला राष्ट्रपति कार्यकाल यूं तो 20 जुलाई,1969 से 24 अगस्त,1969 तक ही था लेकिन इस बीच अमरीका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के भारत दौरे की वजह से अपने आप में ये एक ख़ास एहमियत रखता है।
वो एक मात्र शख्स हैं जो राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और चीफ जस्टिस तीनों पदों पर रहे हैं। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी,उर्दू,फ़ारसी और फ़्रांसीसी भाषाओं का ज्ञान था. उन्हें संस्कृत और बंगाली भी अच्छी तरह से आती थी।
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उनके सम्मान में सन 2003 में हिदायतउल्लाह नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी बनायी गयी. ये यूनिवर्सिटी उनके अपने शहर रायपुर में बनायी गयी। 18 सितम्बर 1992 को इस महान शख्सियत का इंतिक़ाल हो गया।
मोहम्मद हिदायतुल्लाह को मिले पुरूस्कार
• ऑफिसर ऑफ़ दी आर्डर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर (OBE), 1946 में किंग के बर्थडे पर दिया गया सम्मान
• आर्डर ऑफ़ दी युगोस्लाव फ्लैग विथ सश, 1970
• फिल्कांसा का बड़ा मैडल और फलक, 1970
• मार्क ट्वेन का शूरवीर, 1971
• अलाहाबाद यूनिवर्सिटी अलुमिनी एसोसिएशन द्वारा 42 सदस्यों की ‘प्राउड पास्ट अलुमिनी’ की सूचि में उन्हें शामिल किया गया।
• 1968 में लिंकन इन के बेंचर का सम्मान
• प्रेसिडेंट ऑफ़ ऑनर, इन् ऑफ़ कोर्ट सोसाइटी, भारत
• वॉर सर्विस बैज (बिल्ला), 1948
• मनिला शहर के मुख्य और प्रतिष्ठित व्यक्ति, 1971
• शिरोमणि अवार्ड, 1986
• आर्किटेक्ट ऑफ़ इंडिया अवार्ड, 1987
• बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का दशरथमल सिंघवी मेमोरियल अवार्ड
• 1970 और 1987 के बीच, 12 भारतीय यूनिवर्सिटी और फिलीपींस यूनिवर्सिटी ने उन्हें वकिली और साहित्य में डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान की थी।
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मोहम्मद हिदायतुल्लाह द्वारा लिखी किताबे
• एशिया पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित – भारतीय लोकतंत्र और न्यायिक प्रणाली, 1966
• दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका केस, 1967 में एशिया पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित (1966)
• संविधानिक और संसदीय अभ्यास के लिए नेशनल पब्लिशिंग हाउस (1970) द्वारा न्यायिक विधि किताब का प्रकाशन।
• जज का विविध संग्रह, एन.एम. त्रिपाठी (1972)
• यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका और भारत: ऑल इंडिया रिपोर्टर (1977)
• एक जज का विविध संग्रह (दूसरा संस्करण), एन.एम. त्रिपाठी (1972)
• भारतीय संविधान का पाँचवी और छठी अनुसूची, अशोक पब्लिशिंग हाउस
• माय ओन बोसवेल (My Own Boswell) (जीवनी), अर्नाल्ड-हेंएमन्न (1980)
• एडिटर, मुल्ला मोहम्मेदन लॉ
• भारत के संविधानिक अधिकार: बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया ट्रस्ट (1984)
• संपत्ति का अधिकार और भारतीय संविधान: कलकत्ता यूनिवर्सिटी (1984)
• कमर्शियल लॉ पर जस्टिस हिदायतुल्लाह: दीप & दीप (1982)
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