आज के इस आर्टिकल में मै आपको “ अवयव किसे कहते है | Avyav kise kahate hain“, के बारे में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा ।
अवयव किसे कहते है | Avyav kise kahate hain
अव्यय (Indeclinables) परिभाषा : ऐसे शब्द जिनमें लिंग, वचन, पुरुष, कारक आ कारण कोई विकार नहीं आता, अव्यय कहलाते हैं।
ये शब्द सदैव अपरिवर्तित, अविकारी एवं अव्यय रहते का मूल रूप स्थिर रहता है, कभी बदलता नहीं। जैसे—आ कब, इधर, किन्तु, परन्तु, क्यों, जब, तब, और, अतः, इसलिए आदि।
अव्यय के भेद :
अव्यय के चार भेद हैं :
1. क्रिया विशेषण (Adverb) :
जो शब्द क्रिया की विशेष बतलाते हैं, उन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है। अर्थ के आधार पर क्रिया विशेषण चार प्रकार के होते हैं –
(a) स्थानवाचक
स्थितिवाचक | यहाँ, वहाँ, भीतर, बाहर । |
दिशावाचक | इधर, उधर, दाएं, बाएं। |
(b) कालवाचक
समयवाचक | आज, कल, अभी, तुरन्त । |
अवधिवाचक | रात भर, दिन भर, आजकल, नित्य । |
बारंबारतावाचक | हर बार, कई बार, प्रतिदिन । |
(c) परिमाणवाचक
अधिकताबोधक | बहुत, खूब, अत्यन्त, अति । |
न्यूनताबोधक | जरा, थोड़ा, किंचित्, कुछ। |
पर्याप्तिबोधक | बस, यथेष्ट, काफी, ठीक |
तुलनाबोधक | कम, अधिक, इतना, उतना। |
श्रेणीबोधक | बारी-बारी, तिल-तिल, थोड़ा-थोड़ा। |
(d ) रीतिवाचक ऐसे वैसे, जैसे, मानो, धीरे, अचानक, कदाचित, अवश्य, इसलिए, तक, सा, ता, हा, जी, यथासम्भव।
2 – सम्बन्धवाधक (Preposition) :
जो अव्यय किसी संज्ञा के बाट आकर उस संज्ञा का संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते हैं उन्हें संबंध बोधक कहते हैं। जैसे—वह दिन भर काम करता रहा। मैं विद्यालय तक गया था। मनुष्य पानी के बिना जीवित नहीं रह सकता।
अर्थ के आधार पर सम्बन्धबोधक अव्यय के चौदह प्रकार है
स्थानवाचक | आगे, पीछे, निकट, समीप, सामने, बाहर |
दिशावाचक | आसपास, आर, तरफ, दायाँ, बायाँ |
कालवाचक | पहले, बाद, आग, पश्चात, अब, तक |
साधनवाचक | द्वारा, माध्यम, सहारे, जरिए, मार्फत |
उद्देश्यवाचक | लिए, वास्त, हेतु, निमित्त |
व्यतिरकवाचक | अलावा, अतिरिक्त, सिवा, बगैर, बिना, रहित |
विनिमयवाचक | बदले, एवज, स्थान पर, जगह पर |
सादृशवाचक | समान, तुल्य, बरावर, योग्य, तरह, सरीखा |
विरोधवाचक | विरोध, विरुद्ध, विपरीत, खिलाफ |
साहचर्यवाचक | साथ, संग, सहित, समेत |
विषयवाचक | संबंध, विषय, आश्रय, भरोसे |
संग्रहवाचक | लगभग, भर, मात्र, तक, अन्तर्गत |
तुलनावाचक | अपक्षा, बनिस्बत, समक्ष, समान |
कारणवाचक | कारण, परेशानी से, मारे, चलते |
3- समुच्चयबोधक (Conjunction) :
दो वाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक अव्यय कहे जाते हैं। जैसे-
सूरज निकला और पक्षी बोलने लगे।
यहां ‘और’ समुच्चयबोधक अव्यय है।
समुच्चयबोधक अव्यय मूलतः दो प्रकार के होते हैं :
(i) समानाधिकरण (ii) व्यधिकरण
पुनः समानाधिकरण समुच्चयबोधक के चार उपभेद हैं :
संयोजक | और, व, एवं, तथा। |
विभाजक | या, वा, अथवा, किंवा, नहीं तो। |
विरोध दर्शक | पर, परन्तु, लेकिन, किन्तु, मगर, बल्कि, वरन्। |
परिणाम दर्शक | इसलिए, अतः, अतएव । |
व्यधिकरण समुच्चयबोधक के भी चार उपभेद हैं :
कारणवाचक | क्योंकि, चूँकि, इसलिए कि । |
उद्देश्यवाचक | कि, जो, जोकि, ताकि । |
सकतवाचक | जो….तो, यदि….तो, यद्यपि….तथापि । |
स्वरूपवाचक | कि, जो, अर्थात्, यानी। |
4 – विस्मयादिबोधक (Interjection) :
जिन अव्ययों से हर्ष, शोक, घृणा, आदि भाव व्यंजित होते हैं तथा जिनका संबंध वाक्य के किसी पद से नहीं होता, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं, जैसे—हाय ! वह चल बसा।
इस अव्यय के निम्न उपभेद हैं :
हर्षबोधक | वाह !, आहा !, धन्य!, शाबाश!, जय! |
शोकबोधक | हाय!, हा! आह !, अह!, ऊह! काश! त्राहि-त्राहि ! |
आश्चर्यबोधक | ऐं !, क्या !, ओहो !, हैं ! |
स्वीकारबोधक | हाँ!, जी हाँ!, अच्छा!, जी!, ठीक! |
अनुमोदनबोधक | ठीक!, अच्छा !, हाँ हाँ ! हो! |
तिरस्कारबोधक | छिः !, हट !, धिक् !, दुर् ! |
सम्बोधनबोधक | अरे !, रे !, री!, भई!, अजी!, हे !, अहो ! |
निपात : मूलतः निपात का प्रयोग अव्ययों के लिए होता है। लेकिन ये शुद्ध अवयव नहीं होते। इनका कोई लिंग, वचन नहीं होता। निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द समूह या पूरे वाक्य को अन्य (अतिरिक्त) भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं होते। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थ प्रभावित होता है। निपात नौ प्रकार के होते हैं-
स्वीकृतिबोधक | हाँ, जी, जी हाँ। |
नकारबोधक | जी नहीं, नहीं। |
निषेधात्मक | मत। |
प्रश्नबोधक | क्या । |
विस्मयादिबोधक | क्या, काश। |
तुलनाबोधक | सा। |
अवधारणाबोधक | ठीक, करीब, लगभग, तकरीबन । |
आदरबोधक | जी। |
बलप्रदायक | तो, ही, भी, तक,,भर, सिर्फ, केवल । |
Avyav kise kahate hain
हिन्दी में अधिकांशतः निपात उस शब्द या शब्द-समूह के बाद आते हैं, जिनको वे विशिष्टता या बल प्रदान करते हैं, जैसे-
1 – रमेश ने ही मुझे मारा था। (अर्थात् रमेश के अलावा और किसी ने नहीं मारा था।)
2 – रमेश ने मुझे ही मारा था । (अर्थात् मुझे ही मारा था और किसी को नहीं ।)
3 – रमेश ने मुझे मारा ही था। (अर्थात् मारा ही था गाली आदि नहीं दी थी।)
इस प्रकार निपात वाक्यों में नया अथवा गहन भाव प्रकट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अव्यय का पद-परिचय (Parsing of Indeclinables)
वाक्य में अव्यय का पद-परिचय देने के लिए अव्यय, उसका भेद, उससे संबंध रखने वाला पद—इतनी बातों का उल्लेख करना चाहिए। जैसे—वह धीरे-धीरे चलता है।
धीरे-धीरे-अव्यय, क्रिया विशेषण, रीतिवाचक, क्रिया चलता की विशेषता बताने वाला।
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