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ताजमहल का इतिहास | Taj mahal history | Taj mahal ka itihas

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ताजमहल का इतिहास | Taj mahal history | Taj mahal ka itihas

Taj mahal history | Taj mahal ka itihas

Taj mahal history | Taj mahal ka itihas

ऐतिहासिक नगर आगरा 

इतिहास में आगरा का प्रथम उल्लेख महाभारत के समय से माना जाता है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहा एक बहुत बडा जंगल था।

जिसे राजा उग्रसेन जो कंस के पिता थे, ने साफ करवाकर इस नगर की नींंव रखी थी। और अपने नाम पर इस नगर का नाम उग्रसेन रखा था।

बाद में इसे अग्रबाण या अग्रवन के नाम से जाना जाता था। कुछ लोगो का यह भी मानना है की पहले इसे आर्यगृह के नाम से भी पुकारते थे।

और बाद में यह आगरा के नाम से जाना जाने लगा। यह भी कहा जाता है की इस नगर को सबसे पहले आगरा नाम क्लॉडियस टॉलमी ने दिया था जो एक भूगोलविद थे और अपने विश्व भ्रमण के दौरान यहा आए थे

यह तो आगरा का प्राचीन इतिहास था जो पूर्ण रूप से प्रमाणिक तो नही है कुछ तत्थ और अनुमानो के आधार पर है।

आगरा के इतिहास के प्रामाणिक तत्थ मुगलकाल से मिलते है। प्रमाणिक तत्थो के आधार पर आगरा की नींव लोदी वंश के दुसरे शासक सिकंदर शाह लोदी ने 1504 ई. में रखी थी।

Taj mahal history | Taj mahal ka itihas

सिकंदर शाह लोदी दिल्ली के सुल्तान बहलुल खान लोदी का पुत्र था। 1489 में अपने पिता की मृत्यु के बाद वह लोदी वंश का दूसरा शासक बना,और 1489 से 1517 तक वह दिल्ली का सुल्तान बना रहा।

लोदी ने ग्वालियर का किला हासिल करने की कोशिस की और उसने पांच बार ग्वालियर पर आक्रमण भी किए। ले

किन हर बार उसे ग्वालियर के महाराज मानसिह से विफलता ही मिली। लेकिन ग्वालियर को हासिल करने की उसकी महत्वकाक्षां इतनी अधिक थी की उसने ग्वालियर से पहले छावनी बनाने का निर्णय लिया और वर्तमान में जिस जगह आज आगरा यहा छावनी बनाने का निर्णय लिया गया।

उसने इस स्थान को दिल्ली के बाद भारत की दूसरी राजधानी के तौर पर विकसित करना शुरू कर दिया।

क्योकि दिल्ली से ग्वालियर जाने में बहुत समय लगता था। सिकंदर लोदी के समय में इस स्थान को भारत का शिराज के नाम से जाना जाने लगा था।

कुछ समय बाद सिकंदर लोदी ने एक बार फिर ग्वालियर पर आक्रमण किया लेकिन इस बार भी उसे हार का सामना करना पडा।

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1517 में सिकंदर लोदी की मृत्यु हो गयी। और दिल्ली की सलतनत सिकंदर लोदी के पुत्र इब्राहिम लोदी के पास आ गई।

इब्राहिम लोदी ने 1517 से 1526 तक दिल्ली पर राज्य किया। पिता की मृत्यु के बाद इब्रहिम लोदी ने भी ग्वालियर पर कब्जा करना चाहा और जिसमे वो कामयाब भी रहा।

और बिना किसी युद्ध के राजा मानसिंह ने इब्राहिम लोदी की अधिनता स्वीकार कर ली। इब्राहिम लोदी की मृत्यु के बाद भारत में मुगलो का शासन शुरू हुआ।

और आगरा मुगलो को भी खुब भाया और उन्होने आगरा को अपनी राजधानी बनाया। और इस शहर में कई ऐतिहासिक इमारतो का निर्माण कराया।

कुछ समय यह शहर हिन्दू राजाओ के अधिन भी रहा लेकिन मुगलो ने फिर इसे हासिल कर लिया।

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1526 से 1571 तक आगरा मुगलो की राजधानी रहा। 1571 से 1585 तक मुगलो ने फतेहपुर सिकरी को अपनी राजधानी बनाया और वहा ऐतिहासिक किले का निर्माण कराया।

उसके बाद 1585 से 1598 तक मुगलो ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया। लाहौर के बाद एक बार फिर आगरा को 1598 से 1648 तक मुगलो की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

1648 के बाद मुगलो ने अपनी राजधानी दिल्ली बनाई जो 1857 मुगल सम्राज्य के अत तक रही।

इसके बाद भारत में अंग्रेजो का शासन हो गया। उसके बाद अंग्रेजो द्वारा भी इस शहर में एक प्रेसीडेंसी बनवायी गई और 1947 के बाद यह शहर भारत के संविधान के अधिन हो गया।

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ताजमहल का इतिहास

ताजमहल के निर्माण का कार्य तो 1631 में शुरू हुआ था। परंतु इसके इतिहास की शुरूआत माना जाए तो मुगलवंश के पांचवे शासक शाहजहां से शुरू होती है।

जिसने इस अनमोल नगीने का निर्माण कराया था। शाहजहां को निर्माताओ का राजकुमार भी कहा जाता है।

जिसने अपने शासनकाल में अनेक इमारतो का निर्माण करवाया। शाहजहां के द्वारा बनाई गई इमारतो में दिल्ली का लाल किला, दीवाने आम, दीवाने खास, दिल्ली की जामा मस्जिद, आगरा की मोती मस्जिद, आगरा का ताजमहल आदि प्रमुख है। इससे यह साबित होता है की शाहजहां को भव्य निर्माण कराने का बहुत शौक था।

शाहजहां का विवाह 20 वर्ष की आयु मे नूरजहां के भाई आसफ खां की पुत्री आरजुमन्द बानो से सन् 1611 ई. में हुआ था।

जो बाद में मुमताज महल के नाम से जानी जाने लगी। मुमताज महल के बाद शाहजहां की और भी पत्निया हुई।

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परंतु शाहजहां अन्य पत्नियो के मुकाबले मुमताज महल को अधिक प्यार करते थे। शाहजहां ने दूसरी पत्नियो के मुकाबले मुमताज महल को ज्यादा अधिकार भी दे रखे थे। शाहजहां मुमताज महल से बेइंतहा मौहब्बत करने लगे थे।

मुमताज महल की मृत्यु 1631 में अपने चौदहवे बच्चे को जन्म देते समय हो गई। मुमताज महल के शव को उस समय शाहजहां के चाचा दानियाल द्वारा तापी नदी के तट पर जैनाबाद गार्डन में दफनाया गया था।

मुमताज की मृत्यु का शाहजहा को काफी दुख हुआ। वह एकांत में रहने लगे। शाहजहां बुरहानपुर के पीछे ही अपने सैन्य दल के साथ रहने लगे और वही रहते हुए उन्होने मुमताज महल कि याद में एक मकबरा बनाने की योजना बनाई।

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फिर दिसंबर 1631 को मुमताज महल के शव को जैनाबाद की कब्र से निकाल कर एक सोने से बने ताबूत में रखकर यमुना नदी के तट पर एक छोटे से घर में रखा गया।

जब मकबरा तैयार हो गया तो उसमे मुमताज महल के शव को दफनाया गया। और इसका नाम मुमताज महल रखा गया जो आगे चलकर ताजमहल के नाम से पुरी दुनिया में जाना जाने लगा।

जो आज भी अपनी मुहब्बत की निशानी, सुंदरता और स्थापत्य कला का लौहा सारी दुनिया से मनवा रहा है।

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डिजाइनर और वास्तुकार

ताजमहल का इतिहास और ताजमहल की मुहब्बत की दांस्ता जितनी खुबसूरत और रोचक है। उतनी ही रोचक ताजमहल के बनने की की दास्तांं है।

1631 में इस भव्य इमारत के बनाने की योजना बनाई गई थी। सर्वप्रथम इसके आर्किटेक्स, डिजाइन और पर्यवेक्षण के लिए एक टीम बनाई गई।

जिसमे शिराज (इरान) के अमानत खान जो मुख्य सुलेखक थे। दिल्ली के चिरंजीलाल जो किमती पत्थरो के जानकार और मुख्य सजावटी मूर्तिकार थे।

मुहम्मद हनीफ राजगारो के मुख्य पर्यवेक्षक थे और अब्दुल करीम मैमूर खान और मकरामत खान निर्माण स्थल पर दैनिक निर्माण के आर्थिक प्रबंधक थे।

 इस कमेटी का मुख्य अधिक्षक उस्ताद खान लाहौरी को नियुक्त किया गया। कहते है कि ताजमहल का नक्शा खुद शाजहां ने बनाया था .

यह अगल बात है कि इसके लिए उसने उस समय के इंजिनिंयरो, वास्तुकारो, शिल्पकारो की मदद ली हो। कुछ इतिहिसकार मानते है कि नक्सा बनाने के लिए नवीस उस्ताद इंशा की मदद मुख्य रूप में ली गई थी .

ताजमहल के लिए जगह का चुनाव भी खुद शाहजहां ने ही किया था। जगह का चुनाव यमुना नदी के तट पर किया गया ताकि आगरा के किले से जब भी शाहजहां को मुमताज की याद आये तो वह किले से ही ताजमहल का दिदार कर सके।

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जिस स्थान का चयन किया गया वह जगह आमेर के राजा की थी जिनसे शाहजहां वह जगहा खरीदी और बदले में आमेर के राजा को उस जमीन के टुकडे से चार गुना ज्यादा जमीन दी गई थी।

मुहब्बत की इस विशाल इमारत को बनाने के लिए 20 हजार मजदूरो और चुन चुन कर बेहतरीन राजगीरो को उत्तर भारत से भर्ती किया क्या।

इन मजदूरो और कामगारो के रहने के लिए मुमताजाबाद बसाया गया। भारी समानो और पत्थरो के बडे बडे बलॉक को ढोने के लिए 1000 हाथियो और बैलो को लगाया गया था।

20-30 बैलो वाली गाडियो से बडे बडे पत्थरो को लाया जाता था। ताजमहल मे जडे हीरे रत्न व किमती व मूल्यवान पत्थरो को विदेशो से मगंवाया गया था।

ऐसा नही है की ताजमहल यूहीं बनकर तैयार हो गया यह एक बहुत बडा प्रोजैक्ट था जिस पर पूरे तरिके व युद्ध स्तर पर कार्य किया गया था।

जिसकी आर्थिक देखरेख के लिए एक कोषाध्यकक्ष भी नियुक्त किया गया था। ताजमहल को बनाने में उस समय के चार करोड, चौरासी लाख, पैंसठ हजार एक सौ छियासठ रूपए की लागत आई थी 

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ताजमहल के रोचक तथ्य 

१ – आपको यह जानकर हैरानी होगी की ताजमहल का आधार ( नीव) लकडी पर टिकी है। इस लकडी की खासियत यह है कि यह लकडी जितनी पानी में रहती है उतनी ही ज्यादा मजबूत होती है। यमुना नदी का पानी आज भी इस लकडी को मजबूत करता है।

२ – ताजमहल की छत में एक छेद है जिसमे से बरसात के समय आज भी पानी टपकता है। इसके बारे में एक दंतकथा प्रचलित है कहा जाता है कि शाहजहां ने ताजमहल बनने के बाद सभी कारीगरो के हाथ कटवाने का ऐलान कर दिया था। ऐसा माना जाता है कि शाहजहां चाहते थे कि ऐसी खूबसूरत इमारत दुबारा न बनाई जा सके। शाहजहां के इस फैसले से कारीगर नाराज हो गए। जिसके फलस्वरूप कारीगरो ने जानबूझकर ताजमहल के गुम्बद में एक छेद छोड दिया था। हांलाकि इस कहानी का कोई ऐतिहासिक सत्य नही है। ताजमहल का इतिहास में बस यह एक प्रचलित कथा है।

३ – सन् 1983 में ताजमहल को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोसित किया गया।

४ – ताजमहल का इतिहास का सबसे बडा पुस्कार है कि ताजमहल दुनिया के सात अजूबो में शामिल है।

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५ – ताजमहल में लगेेे फव्वारे किसी भी पाइप लाईन से नही जुडे है। बल्कि हर फव्वारे के नीचे एक तांबे का टैंक बना हुआ है। जो सभी एक ही समय पर भरते है और दबाब बनने पर एक साथ सभी फव्वारे चल जाते है।

६ – aताजमहल वर्ल्ड में एक दिन में सबसे ज्यादा देखी जानी वाली इमारत है। ताजमहल को एक दिन में लगभग 12000 सैलानी देखते है।

७ – ताजमहल की कलाकृति में 28 तरह के किमती पत्थरो को लगाया गया है।

८ – ताजमल की चारो मीनारे एक दूसरे की ओर झूकी हुई है।

९ – शाहजहां ने जब पहली बार ताजमहल का दीदार किया तो उसने कहा ” ये सिर्फ प्यार की कहानी बयां नही करेगा। बल्कि उन सबको दोष मुक्त भी करेगा जो इस पाक जमीं पर अपने कदम रखेगें और चांद सितारे इसकी गवाही देंगें।

१० – द्वितीय विश्व युद्ध 1971 भारत पाक युद्ध के समय इस भव्य इमारत को सुरक्षा की दृष्टि से ताजमहल के चारो ओर बासं का सुरक्षा घेरा बनाकर उसे हरे रंग की चादर से ढक दिया गया था।

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