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नैराश्य का सिद्धांत | Nairashya ka siddhant kya hai

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आज के इस आर्टिकल में मै आपको “ नैराश्य का सिद्धांत | Nairashya ka siddhant kya hai  ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –

नैराश्य का सिद्धांत | Nairashya ka siddhant kya hai

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 56 का द्वितीय भाग नैराश्य के सिद्धांत को समाहित करता है।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 56 के अनुसार-

ऐसा कार्य करने की संविदा, जो संविदा के किये जाने के पश्चात् असम्भव हो जाये या किसी ऐसी घटना के कारण जिसका निवारण वचनदाता नहीं कर सकता था , विधि विरुद्ध हो जाये तब शुन्य हो जाती है जब वह कार्य असम्भव या विधि विरूद्ध हो जाये।

इस प्रकार उपरोक्त धारा में अंतर्निहित सिद्धांत कि- किसी संविदा के पालन की पश्चातवर्ती असम्भवता ही विफलता या व्यर्थता या नैराश्य का सिद्धांत है।

इस सिद्धांत के लिये निम्न बातें आवश्यक है –

1  – पक्षकारों के बीच विधिमान्य संविदा हो

2 – संविदा निष्पाद्ध हो अर्थात संविदा के किसी भाग का निष्पादन होना अभी बाकि हो।

3 – संविदा करने के पश्चात उसको प्रवर्तित कराया जाना असम्भव हो गया हो।

  यह सिद्धांत भौतिक असम्भवता तक ही सीमित नहीं है वरन् ऐसी स्थितियों में भी लागू होता है, जिनमें संविदा पालन भौतिक रूप से सम्भव हो परंतु पक्षकारों के उद्देश्य की पूर्ति असम्भव हो गई हो। 

इस सिद्धांत को भारतीय न्यायालय ने सत्यव्रत घोष बनाम मगनीराम के वाद में प्रतिपादित किया।

नैराश्य के आधार

जिन आधारों पर संविदा के पालन को असंभव माना जाता है और पक्षकारों का संविदा पालन से उन्मोचन हो जाता है वे निम्न है-

1 – विषय वस्तु का विनाश

2 – परिस्थितियों में परिवर्तन

3 – अपेक्षित घटना का न होना

4 – पक्षकार की अयोग्यता या मृत्यु

5 – सरकारी तथा वैधानिक हस्तक्षेप

6 – युद्ध का हस्तक्षेप

नैराश्य के सिद्धांत की सीमायें

असंभवता के सिद्धांत की कुछ सीमायें है जिनमें ऐसे सिद्धांत को लागू नहीं किया जा सकता और पक्षकार दायित्व से मुक्त नहीं होगें, जो निम्नानुसार है-

(i) स्वप्रेरित विफलता

(ii)निष्पादित संविदा

(iii) ऐसी घटनाओं के कारण जिन्हें वचनदाता रोक सकता था। 

(iv) व्यापारिक असंभवता

(v) जब वचनदाता उसका असंभव या विधि विरूद्ध होना जानता था या युक्तियुक्त तत्परता से जान सकता था और वचनगृहीता नहीं जानता था वहाँ किसी हानि को वचनगृहिता वचनदाता से ले सकेगा। (धारा 56 का भाग 3)

[ Nairashya ka siddhant ] नैराश्य के सिद्धांत का परिणाम

जब ऐसी किसी असंभवता के आधार पर संविदा शून्य होती है। धारा 65 संविदा के व्यर्थ होने पर पक्षकारों के अधिकारों का व्यवस्थापन करती है.

यदि शून्य संविदा के होने पर किसी पक्षकार ने कोई फायदा प्राप्त किया हो तो वह फायदा दूसरे पक्षकार को लौटाना होगा।

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