क्यों मनाते हैं गुड़ी पड़वा जानिए | Gudi padwa information in Hindi
Gudi padwa information in Hindi
गुड़ी पड़वा से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। इस दिन चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा है । इस दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है।
गुड़ी का अर्थ है विजय पताका। मान्यता है कि ब्रह्माजी ने इसी दिन से सृष्टि का निर्माण आरंभ किया था।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इसी दिन से नववर्ष यानी नए संवत्सर की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन को नवसंवत्सर भी कहते हैं और इसी दिन चैत्र के नवरात्र शुरू होते हैं।
इस त्योहार को मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों के अलावा मुख्य रूप से गोवा और महाराष्ट्र राज्यों में मनाया जाता है।
महाराष्ट्र में इस त्योहार की विशेष रौनक देखने को मिलती है। यहां इस दिन कई प्रकार के जुलूस निकाले जाते हैं।
Gudi padwa information in Hindi
गुड़ी पड़वा पौराणिक कथाएं
मान्यता है कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। बाली के त्रास से मुक्त होने के बाद लोगों ने अपने घरों में उत्सव मनाए थे और सभी ने अपने घर के आंगन में गुड़ी (ध्वज) फहराए। महाराष्ट्र के हर घर में इस दिन विजय के प्रतीक के रूप में गुड़ी सजाई जाती है।
मान्यता यह भी है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूंक दिए और इस सेना की मदद से शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया।
गुड़ी पड़वा मनाने वाले इस दिन भगवान भास्कर की पूजा अर्चना करके घर में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। महाराष्ट्र में इस दिन पूरन पोली और मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम मिलाया जाता है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि’ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है।
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जानें क्यों मनाया जाता है गुड़ी पड़वा
गुड़ी पड़वा को चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा के साथ मनाया जाएगा। इसके साथ ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है। इसे हिन्दू नववर्ष, वर्ष प्रतिपदा, उगादि, नवसंवत्सर और युगादि भी कहा जाता है। हिन्दू सनातन् धर्म में गुड़ी पड़वा का खास महत्व है।
गुड़ी पड़वा हर साल चैत्र महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इससे नए साल की शुरुआत होती है। देश के शहरों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है और मनाया जाता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को बहुत खास तरह से मनाया जाता है।
वहीं गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो के नाम से मनाता है। कर्नाटक में गुडी पड़वा को युगाड़ी पर्व के नाम से जाना जाता है। आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे उगाड़ी नाम से जानते हैं।
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इसी दिन पंचांग की रचना भी हुई थी
हिंदू पंचांग के आधार पर चैत्र को साल का पहला महीना बताया गया है। चैत्र प्रतिपदा को ही आदि शक्ति ने ब्रह्मा को सृष्टि के निर्माण कि लिए प्रेरित किया था और इसी दिन से सृष्टि का आरंभ भी माना जाता है, इसलिए इसको नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। इसी दिन महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और पर्ष की गणना करके पंचांग तैयार किया था। इसलिए इस दिन पंचांग की भी पूजा की जाती है।
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गुड़ी पड़वा का महत्व
गुड़ी पड़वा दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में विशेषतः मनाया जाता है। इस अवसर पर आंध्र प्रदेश राज्य के लोग अपने घरो में प्रसादम बांटते है। ऐसी मान्यता है कि इस प्रसाद के सेवन से मनुष्य निरोगी बना रहता है। महाराष्ट्र में इस दिन पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इस विशेष पकवान में गुड, नमक, नीम के फूल, और कच्चा आम मिलाया जाता है। दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा के दिन से आम खाया जाता है।
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गुड़ी पड़वा पूजन विधि
गुड़ी पड़वा के दिन नववर्ष का प्राम्भ होता है। इस दिन स्नान-ध्यान से निवृत होकर दम्पत्ति को एक साथ मर्यादा पुरषोत्तम राम तथा माता जानकी की पूजा करनी चाहिए। प्रभु की कृपा से परिवार तथा दम्पत्ति के जीवन में सुख, शांति तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
इस दिन दम्पत्ति का आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन पलाश तथा आम के पत्तो से घरो को सजाया जाता है। गुड़ी पड़वा के दिन लोग एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं देने जाते है। इस तरह गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाता है ।