Home LAW डिक्री के आवश्यक तत्व | Decree ke aavashyak tatva

डिक्री के आवश्यक तत्व | Decree ke aavashyak tatva

6167
0

आज के इस आर्टिकल में मै आपको “ डिक्री के आवश्यक तत्व | Decree ke aavashyak tatva” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –

डिक्री के आवश्यक तत्व | Decree ke aavashyak tatva

1 – न्यायालय द्वारा एक न्यायानणयन – न्यायनिर्णयन एक न्यायालय द्वारा होना चाहिए कोई भी निर्णय जो एक ऐसे अधिकारी द्वारा किया जाता है जो न्यायालय के रूप में नहीं बैठता है और उसके द्वारा दिया गया निर्णय डिक्री की सीमा में नहीं आता है।

2 – वाद में न्याय निर्णयन – न्यायालय द्वारा न्याय निर्णयन किसी वाद में होना चाहिए वाद की परिभाषा संहिता में कहीं नहीं दी गई है। प्रिवी कौंसिल ने 1935 में हंसराज ब. देहरादून मसूरी इलेक्ट्रिक ट्रामवेज कंपनी लि. में वाद को परिभाषित करने का प्रयत्न किया – वाद शब्द का अभिप्राय किसी विशेष संदर्भ से भिन्न, साधारणतया ऐसी दीवानी कार्यवाहियों से है जो वादपत्र प्रस्तुतीकरण द्वारा संस्थित की जाती है इस प्रकार डिक्री का संबंध किसी वाद में ही न्यायालय का निर्णयन डिक्री की संज्ञान ले सकता है।

3  – वाद में विवादग्रस्त सभी या किन्हीं विषयों के सम्बन्ध में पक्षकारो के अधिकारों का अवधारण।

4 – अवधारण का निश्चायक होना – निर्णय देने वाले न्यायालय के द्वारा वह अवधारणा पूर्ण व अतिम होना चाहिये। यदि कोई प्रश्न विनिश्चय के लिये रह जाता है तो वह डिक्री नहीं हो सकता।

5 – न्याय निर्णयन की एक औपचारिक अभिव्यक्ति- वाद में जो अनतोष माँगा गया है उसे स्वीकार या इंकार करना न्यायनिर्णयन की औपचारिक अभिव्यक्ति है।

 Madhyprdesh ki nadiya | मध्यप्रदेश की नदियाBUY  Madhyprdesh ki nadiya | मध्यप्रदेश की नदियाBUY

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here