छठ पूजा का इतिहास | Chhath puja 2018
Chhath puja 2018
छठ पूजा हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में मनाया जाने वाला हिन्दुओ का एक विशेष त्यौहार है .
जो की अधिकतर पूर्वी भारत के लोगो का एक प्रमुख पर्व है अक्सर कहा जाता है की लोग चढ़ते हुए सूर्य को सलाम करते है .
लेकिन छठ पूजा के त्योहार की ऐसी महिमा है की जिसमे उगते हुए और डूबते हुए सूर्य की आराधना की जाती है .
जो की अपने आप में एक अनोखा पर्व है जो की मानव को प्रकृति से सीधे रूप से जोडती है .
छठ पूजा में सूर्य देव की आराधना किया जाता है जिसमे सम्पूर्ण परिवार के मंगल की कामना की जाती है और लोगो का मानना है की सूर्य देव की पूजा करने से सूर्य के तेज से मानव रोग एंव कष्ट मुक्त होता है .
Chhath puja 2018
छठ पूजा दो बार मनाया जाता है छठ पूजा
चैत मास में भी छठ पूजा होती है जिसे चैती छठ कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी उषा को छठी मैया कहा जाता है.
इनकी पूजा सूर्यदेव की पूजा के साथ ही साथ की जाती है. छठ व्रत करनेवाले व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती है. छठी मैया उनके परिवार और संतान की रक्षा करती हैं
प्रति वर्ष दीपावली के बाद छठ महापर्व का अनुष्ठान किया जाता है. यह लोक आस्था का महान पर्व है. यह कार्तिक महीने के षष्ठी को मनाया जाता है.
यह पर्व मुख्य रूप से चार दिनों तक चलता है. इसकी शुरुआत चतुर्थी को और समापन सप्तमी को होता है. इसे कार्तिक छठ कहा जाता है.
जिसमे कार्तिक महीने की छठ पूजा का विशेष महत्व है यह छठ पूजा कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में षष्ठी को मनाया जाता है.
जो की मुख्यत 4 दिनों का त्योहार है छठ पूजा को डाला छठ, छठी माई के पूजा, डाला पूजा और सूर्य षष्ठी पूजा के नाम से भी जाना जाता है
Chhath puja 2018
क्यों मानते हैं लोग छठ पूजा
हिन्दू धर्म के अनुसार प्रकृति की पूजा का विशेष प्रावधान है ,हमे ईश्वर को विभिन्न रूपों में मानकर उनकी पूजा अर्चना करते है .
पूरे ब्रह्माण्ड को रोशनी सूर्य से ही प्राप्त होता है और सूर्य के किरणों के तेज से ही इस धरती पर दिन रात सम्भव है.
जिसके कारण हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है जिस कारण छठ पूजा के माध्यम से लोग डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ देते है और सभी लोग स्वस्थ रहे ऐसी सूर्यदेव से मंगल कामना करते है .
छठ पूजा की इसी विशेष महिमा के कारण लोग संतान प्राप्ति हेतु भी इस छठ पूजा का व्रत रखते है और लोगो का मानना है की छठ पूजा करने से माँ छठी प्रसन्न होती है और लोगो को सन्तान सुख की प्राप्ति होती है.
Chhath puja 2018
छठ पूजा का इतिहास
भारतीय संस्कृति में ऋग वैदिक काल से सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है, हिन्दू धर्म के अनुसार सूर्य एक ऐसे देवता है जिनका साक्षात् रूप से दर्शन किया जाता है .
सम्पूर्ण जगत सूर्य के प्रकाश से ही चलायमान है पेड़ पौधों के जीवन के अस्तित्व से लेकर दिन, रात, धुप, छाव, सर्दी, गर्मी, बरसात सभी सूर्य द्वारा ही संचालित होता है .
जिस कारण सूर्य को आदिदेव भी कहा जाता है जिस कारण से हिन्दू धर्म में सूर्य देव की विशेष पूजा अर्चना उपासना का महत्व है.
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छठ पूजा पर पौराणिक कहानिया
राजा प्रियव्रत की संतान प्राप्ति की कहानी
बहुत प्राचीन समय की कथा है. एक बहुत प्रतापी राजा हुए. उनका नाम प्रियव्रत था. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था.
लेकिन उस दम्पती को कोई संतान नहीं थी. महामुनि कश्यप के आदेश पर उन लोगों ने पुत्र प्राप्ति यज्ञ किया.
पुत्र भी हुआ, लेकिन मृत पैदा हुआ. इस घटना से राजा और रानी अति विचलित हो गये और अपने -अपने प्राण त्यागने की सोचने लगे.
उसी समय ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुई. उन्होंने राजा से कहा कि वे सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं. इसीलिए उनको षष्ठी कहा जाता है.
उनकी पूजा करने से उन्हें संतान की प्राप्ति होगी. राजा और रानी ने बहुत ही नियम और निष्ठापूर्वक छठी माता की पूजा की और उनको एक सुन्दर-सा पुत्र की प्राप्ति हुई .
यह पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को की गयी थी. कहा जाता है कि तभी से छठ पूजा की जाती है.
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दानवीर कर्ण और छठ पूजा
महाभारत में भी छठ पूजा और सूर्य पूजा के उदहारण मिलते हैं. कहा जाता है कि दानवीर कर्ण ने छठ पूजा की शुरुआत की थी.
कर्ण को सूर्यपुत्र भी कहा जाता था , वे सूर्य के बहुत बड़े उपासक थे. कहा जाता है कि वे प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे और अपने द्वार पर आये याचक को दान करते थे.
वे प्रतिदिन घंटों कमर तक गंगाजल में खड़े होकर सूर्य देव की पूजा अर्चना किया करते थे. भगववान सूर्य और छठी माता की कृपा से वे एक महान योद्धा बने.
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द्रौपदी और छठ पूजा
जब पांडव जुए में सब कुछ हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ पूजा की थी. छठ पूजा के उपरांत इसका फल मिला और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया और उन्होंने बहुत लम्बे समय तक हस्तिनापुर पर राज किया.
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माता सीता और छठ पूजा
बात त्रेता युग की है. दशानन रावण का वध करके भगवान् राम विजयादशमी के दिन अयोध्या पहुंचे और उनकी वापसी की खुशी में दीपावली का पर्व मनाया जाता है.
लंका युद्ध में बहुत सारे लोगों का संहार हुआ था. रावण और उसके भाइयों का प्रभु श्रीराम ने विनाश किया.
गुरु और ऋषियों की सलाह पर रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान् राम ने राजसूय यज्ञ किया. इस यज्ञ में ऋषि मुद्गल भी अयोध्या पधारे.
ऋषि मुद्गल ने माता सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी को सूर्यदेव के उपासना करने का आदेश दिया.
माता सीता ने उनके आश्रम में रहकर छः दिनों तक भगवान सूर्य की पूजा की. तभी से इस दिन छठ पर्व मनाया जाने लगा.
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छठ पूजा व्रत
छठ पूजा लगातार 4 दिनों चलने वाला महापर्व है जिसमे महिलाये, पुरुष, बच्चे सभी सम्मिलित रूप से भाग लेते है .
छठपूजा व्रत मुख्यत महिलायों द्वारा किया जाता है जो की अपने आप में एक कठिन व्रत है महिलाओ के अलावा पुरुष भी इस व्रत का पालन करते है .
इस व्रत में महिलाए लगातार 4 दिन का व्रत रखती है जिसके दौरान इन दिनों में ये महिलाये जमीन के फर्श पर ही चटाई या चादर के सहारे सोती है .
चूकी यह पर्व साफ़ सफाई का पर्व है जिसमे साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है व्रत के दौरान नये वस्त्र धारण किये जाते है .
जो की सिली हुई नही होती है इस तरह महिलाये इन दिनों साड़ी या धोती के वस्त्र ही धारण करती है
छठ पूजा व्रत महिलाओ द्वारा पुत्र रत्न प्राप्ति की कामना से की जाती है जबकि कुछ लोग अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति हेतु इस व्रत का पूरी निष्ठा के साथ पालन करते है
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छठ पूजा विधि
यह त्योहार 4 दिनों तक मनाया जाता है जिसके हर दिन का अपना महत्व है जो इस प्रकार है-
छठ पूजा के पहले दिन यानी कार्तिक महींने के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी को नहाय खाय के नाम से भी जाना जाता है .
इस दिन पूरे घर को साफ़ सुथरा करके शुद्ध करके पूजा के योग्य बनाया जाता है, इस दिन जो लोग व्रत रखते है वे सबसे पहले स्नान करके नये वस्त्र धारण करके इस व्रत की शुरुआत करते है .
व्रत करने वाले के शाकाहारी भोजन खाने के बाद ही घर के अन्य सभी सदस्य भोजन ग्रहण करते है शाकाहारी भोजन में कद्दू और चने की दाल तथा चावल विशेष रूप से महत्व है.
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लोहंडा और खरना
इस व्रत के दुसरे दिन यानी पंचमी के दिन पूरे दिन व्रत रखने के पश्चात शाम को व्रती भोजन ग्रहण करती है जिसे खरना कहा जाता है .
खरना का मतलब होता है पूरे दिन पानी की एक बूंद भी पिए बिना व्रत रहना होता है फिर शाम को चावल और गुड़ से खीर बनाया जाता है .
जिसमे चावल का पिठ्ठा और घी की चुपड़ी रोटी भी बनायीं जाती है इस खाने में नमक और चीनी का प्रयोग नही किया जाता है और इसे प्रसाद के रूप से आस पास के लोगो को भी बाटा जाता है.
Chhath puja 2018
संध्या अर्घ्य
छठ पूजा का यह विशेष दिन होता है कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के षष्ठी के दिन यानी पूजा के तीसरे दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है .
प्रसाद के रूप में ठेकुआ का विशेष महत्व है भारत के कुछ भागो में इसे टिकरी और अन्य नामो से भी जाना जाता है .
इसके अलावा चावल के लड्डू भी बनते है फिर शाम को पूरी तरह तैयारी करने के बाद इन प्रसादो और पूजा के फलो के बांस के टोकरी में सजाया जाता है और इस टोकरी की पूजा करने के बाद घर के सभी सदस्यों के साथ जो व्रत रहते है वे सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तालाबो, नदियों या घाटो पर जाते है.
फिर व्रती पानी में स्नान करके डूबता हुए सूर्य की विधिवत पूजा करके सूर्य को अर्घ्य देती है इस मनोहर दृश्य को देखने लायक होता है जिसके कारण घाटो पर अत्यधिक भीड़ लग जाती है.
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उषा अर्घ्य
छठ पूजा के चौथे दिन यानी सप्तमी के दिन जैसे लोग डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते है ठीक उसी प्रकार पूरे परिवार के साथ उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दी जाती है.
विधिवत पूजा पाठ करने के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है और इस प्रकार इस छठ पूजा का समापन किया जाता है.
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छठ पूजा के नियम
चुकी छठ पूजा का पर्व बहुत ही साफ़ सफाई का पर्व है यह बहुत ही कठिन और परीक्षा का व्रत होता है .
इसलिए 4 दिनों के दौरान घरो में लहसुन प्याज तक नही खाए जाते है और जो लोग व्रत रखते है उन्हें घर में एक ऐसा कमरा दिया जाता है जहा पर पूरी तरह से शांति रहे.
जिससे व्रत रखने वाला ईश्वर में ध्यान लगा सके और जो लोग छठ पूजा का व्रत रखते है उनके मन में किसी भी प्रकार का लालच, मोह भय आदि नही रखनी चाहिए.
Chhath puja 2018
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा का अपने आप में एक विशेष महत्व है पहले यह त्योहार भारत के पूर्वी भागो यानि उत्तर प्रदेश और बिहार तक ही सिमित था लेकिन जैसे जैसे सूचना के क्षेत्र में क्रांति आई है इस पर्व का प्रसार पूरे भारत, नेपाल जैसे दूर देशो तक फैलता जा रहा है .
इस पर्व की ऐसी मान्यता भी की जो लोग भी इस छठ पूजा के व्रत का विधिवत पालन करते है उन्हें कभी भी संतान सुख से अछूते नही रहते है और उनका शरीर स्वस्थ्य और निरोगी होता है
कहा जाता है की इस व्रत को निरंतर करने से हमारे जीवन में सुख शांति की प्राप्ति होती है और हमारे जीवन की आयु भी स्वस्थ्य और लम्बी होती है जिस कारण से इस छठ महापर्व का महत्व बहुत तेजी से लोगो में बढ़ता जा रहा है.
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