आज के इस आर्टिकल में मै आपको “जब वह अपराध, जो साबित हुआ है, आरोपित अपराध के अंतर्गत है | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 222 क्या है | section 222 CrPC in Hindi | Section 222 in The Code Of Criminal Procedure | CrPC Section 222 | When offence proved included in offence charged ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 222 | Section 222 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 222 in Hindi ] –
जब वह अपराध, जो साबित हुआ है, आरोपित अपराध के अंतर्गत है—
(1) जब किसी व्यक्ति पर ऐसे अपराध का आरोप है जिसमें कई विशिष्टियां हैं, जिनमें से केवल कुछ के संयोग से एक पूरा छोटा अपराध बनता है और ऐसा संयोग साबित हो जाता है किन्तु शेष विशिष्टियां साबित नहीं होती हैं तब वह उस छोटे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था।
(2) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है और ऐसे तथ्य साबित कर दिए जाते हैं जो उसे घटाकर छोटा अपराध कर देते हैं तब वह छोटे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था।
(3) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप है तब वह उस अपराध को करने के प्रयत्न के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि प्रयत्न के लिए पृथक् आरोप न लगाया गया हो।
(4) इस धारा की कोई बात किसी छोटे अपराध के लिए उस दशा में दोषसिद्ध प्राधिकृत करने वाली न समझी जाएगी जिसमें ऐसे छोटे अपराध के बारे में कार्यवाही शुरू करने के लिए अपेक्षित शर्ते पूरी नहीं हुई हैं।
दृष्टांत
(क) क पर उस संपत्ति के बारे में, जो वाहक के नाते उसके पास न्यस्त है, आपराधिक न्यासभंग के लिए भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 407 के अधीन आरोप लगाया गया है। यह प्रतीत होता है कि उस संपत्ति के बारे में धारा 406 के अधीन उसने आपराधिक न्यायभंग तो किया है किन्तु वह उसे वाह्क के रूप में न्यस्त नहीं की गई थी। वह धारा 406 के अधीन आपराधिक न्यासभंग के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा।
(ख) क पर घोर उपहति कारित करने के लिए भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 325 के अधीन आरोप है। वह साबित कर देता है कि उसने घोर और आकस्मिक प्रकोपन पर कार्य किया था। वह उस संहिता की धारा 335 के अधीन दोषसिद्ध किया जा सकेगा।