आज के इस आर्टिकल में मै आपको “जहां इस बारे में संदेह है कि कौन-सा अपराध किया गया है | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 221 क्या है | section 221 CrPC in Hindi | Section 221 in The Code Of Criminal Procedure | CrPC Section 221 | Where it is doubtful what offence has been committed ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 221 | Section 221 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 221 in Hindi ] –
जहां इस बारे में संदेह है कि कौन-सा अपराध किया गया है—
(1) यदि कोई एक कार्य या कार्यों का क्रम इस प्रकार का है कि यह संदेह है कि उन तथ्यों से, जो सिद्ध किए जा सकते हैं, कई अपराधों में से कौन सा अपराध बनेगा तो अभियुक्त पर ऐसे सब अपराध या उनमें से कोई करने का आरोप लगाया जा सकेगा और ऐसे आरोपों में से कितनों ही का एक साथ विचारण किया जा सकेगा; या उस पर उक्त अपराधों में से किसी एक को करने का अनुकल्पतः आरोप लगाया जा सकेगा।
(2) यदि ऐसे मामले में अभियुक्त पर एक अपराध का आरोप लगाया गया है और साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि उसने भिन्न अपराध किया है, जिसके लिए उस पर उपधारा (1) के उपबंधों के अधीन आरोप लगाया जा सकता था, तो वह उस अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा जिसका उसके द्वारा किया जाना दर्शित है, यद्यपि उसके लिए उस पर आरोप नहीं लगाया गया था।
दृष्टांत
(क) क पर ऐसे कार्य का अभियोग है जो चोरी की, या चुराई गई संपत्ति प्राप्त करने की, या आपराधिक न्यासभंग की, या छल की कोटि में आ सकता है। उस पर चोरी करने, चुराई हुई संपत्ति प्राप्त करने, आपराधिक न्यासभंग करने और छल करने का आरोप लगाया जा सकेगा अथवा उस पर चोरी करने का या चोरी की संपत्ति प्राप्त करने का या आपराधिक न्यासभंग करने का या छल करने का आरोप लगाया जा सकेगा।
(ख) ऊपर वर्णित मामले में क पर केवल चोरी का आरोप है। यह प्रतीत होता है कि उसने आपराधिक न्यासभंग का यह चुराई हुई संपत्ति प्राप्त करने का अपराध किया है । वह (यथास्थिति) आपराधिक न्यासभंग या चुराई हुई संपत्ति प्राप्त करने के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा, यद्यपि उस पर उस अपराध का आरोप नहीं लगाया गया था।
(ग) क मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथ पर कहता है कि उसने देखा कि ख ने ग को लाठी मारी । सेशन न्यायालय के समक्ष क शपथ पर कहता है कि ख ने ग को कभी नहीं मारा। यद्यपि यह साबित नहीं किया जा सकता कि इन दो परस्पर विरुद्ध कथनों में से कौन सा मिथ्या है तथापि क पर साशय मिथ्या देने के लिए अनुकल्पतः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।