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अपहरण क्या है | Kidnap kya hai | Dhara 359 ipc

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अपहरण क्या है | Kidnap kya hai | Dhara 359 Ipc

Kidnap kya hai | Dhara 359 ipc

इस आर्टिकल में मै आपको भारतीय दंड संहिता की बहुत ही महत्वपूर्ण धारा 359 (व्यपहरण) और धारा -362 (अपहरण ) के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूँ . आशा करता हूँ की मेरा यह प्रयास आपको पसंद आएगा .

धारा 359 – व्यपहरण –  व्यपहरण दो किस्मे का होता है

१ – भारत में से व्यपहरण

२ –  विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यह्परण

Kidnap kya hai | Dhara 359 ipc

धारा 360भारत में से व्यपहरण 

जो कोई किसी व्यक्ति का ,उस व्यक्ति का या उस व्यक्ति की और से सहमती देने के लिए विधितः प्राधिकृत व्यक्ति की सहमती के बिना भारत की सीमाओं से प्रवहरण कर देता है , वह भारत में से उस व्यक्ति का व्यपहरण करता है ,यह कहा जाता है .

भारत में से व्यपहरण के आवश्यक तत्व –

क – अभियुक्त द्वारा किसी व्यक्ति का प्रवहरण किया गया हो .

ख – ऐसा प्रवहरण भारत की सीमओं से परे किया गया हो .

ग – ऐसा प्रवहरण , प्रवहणित व्यक्ति की सहमती के बिना या उसकी और से सहमती देने हेतु विधितः प्राधिकृत व्यक्ति की सहमती के बिना किया गया हो .

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धारा 361 –  विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यह्परण 

जो कोई किसी अप्राप्तवय को  – यदि वह पुरुष हो तो सोलह वर्ष से कम आयु वाले को , या यदि वह स्त्री हो तो अठारह वर्ष से कम आयु वाली को , या किसी विकृतचित्त व्यक्ति को ,ऐसे अप्राप्तवय या विकृतचित्त व्यक्ति को विधि सम्मत संरक्षता में से ऐसे संरक्षक की सहमती के बिना ले जाता है या बहका ले जाता है वह ऐसे अप्राप्तवय या ऐसे व्यक्ति का विधिपूर्ण संरक्षता में से व्यपहरण करता है ,यह कहा जाता है .

विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यह्परण के आवश्यक तत्व –

१ – अभियुक्त द्वारा किसी अवयस्क (यदि पुरुष हो तो 16 वर्ष से कम आयु वाले तथा यदि स्त्री हो तो 18 वर्ष से कम आयु वाली) या विकृतचित्त व्यक्ति को बहला फुसलाकर ले जाया गया हो .

२ – aअभियुक्त ने ऐसा विधिपूर्ण संरक्षक की संरक्षता में से किया हो .

३ – अभियुक्त ने ऐसा कृत्य विधिसम्मत संरक्षक की सहमती के आभाव में किया हो .

४ – धारा 361 में परिभाषित अपराध किसी विकृतचित्त या अवयस्क के विरुद्ध किया जा सकता है .

विकृतचित्त से तात्पर्य नेसर्गिक कारणों से उत्पन्न चित्तविकृति से है .अस्थाई उन्मुक्तता धारा 361 के प्रयोजनों के लिए चित्त विकृति नहीं होगी .

अवयस्क से तात्पर्य 18 वर्ष से कम आयु की स्त्री तथा 16 वर्ष से कम आयु के पुरुष से है .

५ –  धारा 361 के प्रयोजनों के लिए ऐसा व्यक्ति भी विधिसम्मत संरक्षक है जिसकी अभिरक्षा में या देखभाल में अवयस्क या विकृतचित्त व्यक्ति विधितः न्यस्त किया गया था .

६ – धारा 361 ऐसे व्यक्ति के पक्ष में अपवाद सृजित करती है जो सद्भावना पूर्वक , अधर्मज संतान का स्वयं को पिता समझते हुए या ऐसी संतान के विधिक अभिरक्षा का अधिकारी समझते हुए अवयस्क को ले जाता है ( यदि अनैतिक या विधिविरुद्ध प्रयोजनों हेतु अवयस्क को न ले जाया गया हो )

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अपहरण क्या है धारा -362

जो कोई किसी व्यक्ति को किसी स्थान से जाने के लिए ,बलपूर्वक बाध्य करता है .या प्रवंचनापूर्ण साधनों द्वारा उत्प्रेरित करता है , वह उस व्यक्ति का अपहरण करता है ,यह कहा जाता है .

धारा 362 के अर्थों में अपहरण के गठन हेतु बाह्य प्रभाव के अधीन मस्तिष्क परिवर्तन अपेक्षित है . या तो बल प्रयोग द्वारा या प्रवंचना पूर्ण साधनों द्वारा किसी व्यक्ति को किसी स्थान से हटाया गया होना चाहिए .आपराधिक बल का वास्तविक प्रयोग आवश्यक है .

यह बात सराहनीय होगी की अपहरण का उद्देश्य क्या था , अपहरण एक सतत कृत्य है अतः जब-जब अपहृत व्यक्ति को एक स्थान से दुसरे स्थान पर हटाया जाता है , तब-तब प्रत्येक बार अपहरण गठित होता है .

अपहरण तब तक दण्डित नहीं है जब तक की वह संहिता द्वारा निर्दिष्ट किसी आशय से न किया गया हो .

व्यपहरण के लिए दंड 

जो कोई भारत में से या विधिपूर्ण संरक्षता में से किसी व्यक्ति का व्यपहरण करेगा ,वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डित किया जायेगा .

भारतीय दंड संहिता की धारा 359 (व्यपहरण) और धारा 362 (अपहरण) की परिभाषा एवं व्यपहरण और अपहरण करने का दंड ओरिजनल बुक के अनुसार नीचे पीडीएफ फाइल में देखिये .

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