मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना | False evidence | Dhara 191 Ipc
False evidence | Dhara 191 Ipc
इस आर्टिकल में मै आपको भारतीय दंड संहिता की बहुत ही महत्वपूर्ण धारा 191 मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना (False evidence) के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूँ . आशा करता हूँ की मेरा यह प्रयास आपको पसंद आएगा . तो चलिए जान लेते हैं की –
मिथ्या साक्ष्य देना किसे कहते हैं ?
धारा 191 – मिथ्या साक्ष्य देना –
जो कोई शपथ द्वारा या विधि के किसी अभिव्यक्त उपबंध द्वारा सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, या किसी विषय पर घोषणा करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए, ऐसा कोई कथन करेगा, जो मिथ्या है, और या तो जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह झूठा साक्ष्य देना कहलाता है।
स्पष्टीकरण 1- कोई कथन चाहे वह मौखिक हो, या अन्यथा किया गया हो, इस धारा के अंतर्गत आता है ।
स्पष्टीकरण 2- अनुप्रमाणित करने वाले व्यक्ति के अपने विश्वास के बारे में मिथ्या कथन इस धारा के अर्थ के अंतर्गत आता है और कोई व्यक्ति यह कहने से कि उसे उस बात का विश्वास है, जिस बात का उसे विश्वास नहीं है, तथा यह कहने से कि वह उस बात को जानता है जिस बात को वह नहीं जानता, मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी हो सकेगा।
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मिथ्या साक्ष्य गढना किसे कहते हैं ?
धारा -192 – मिथ्या साक्ष्य गढना –
जो कोई इस आशय से किसी परिस्थिति को अस्तित्व में लाता है ,या (किसी पुस्तक या अभिलेख या इलेक्ट्रोनिक अभिलेख में कोई मिथ्या प्रविष्ठी करता है या मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट रखने वाली कोई दस्तावेज या इलेक्ट्रोनिक अभिलेख रचता है ) की ऐसी परिस्थिति , मिथ्या प्रविष्ठी या मिथ्या कथन न्यायिक कार्यवाही में या ऐसी किसी कार्यवाही में , जो लोक सेवक के समक्ष उसके नाते या मध्यस्थ के समक्ष विधि द्वारा की जाती है ,साक्ष्य में दर्शित हो और की इस प्रकार साक्ष्य में दर्शित होने पर ऐसी परिस्थिति , मिथ्या प्रविष्ठी या मिथ्या कथन के कारण कोई व्यक्ति जिसे ऐसी कार्यवाही में साक्ष्य के आधार पर राय कायम करनी है ऐसी कार्यवाही के परिणाम के लिए तात्विक किसी बात के सम्बन्ध में गलत राय बनाये वह मिथ्या साक्ष्य गढ़ता है यह कहा जाता है .
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मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड
धारा 193 मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड – जो कोई साक्ष्य किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में मिथ्या साक्ष्य देगा या किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग में लाये जाने के प्रयोजन से मिथ्या साक्ष्य गढ़ेगा , वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक हो सकेगी दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डित किया जायेगा .
और जो कोई किसी अन्य मामले में साशय मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक हो सकेगी , दण्डित किया जायेगा , और जुर्माने से भी दण्डित होगा .
स्पष्टीकरण १ – सेना न्यायालय के समक्ष विचारण न्यायिक कार्यवाही है .
स्पष्टीकरण २ – न्यायालय के समक्ष कार्यवाही प्रारंभ होने के पूर्व जो विधि द्वारा निर्दिष्ट अन्वेषण होता है , वह न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है , चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो .
स्पष्टीकरण ३ – न्यायालय द्वारा विधि के अनुसार निर्दिष्ट और न्यायालय के प्राधिकार के अधीन संचालित अन्वेषण न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है ,चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो .
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मिथ्या साक्ष्य देना और मिथ्या साक्ष्य गढ़ना
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भारतीय दंड संहिता की धारा 191 (मिथ्या साक्ष्य देना) और धारा -192 ( मिथ्या साक्ष्य गढना ) की परिभाषा एवं दंड ओरिजनल बुक के अनुसार नीचे पीडीएफ फाइल में देखिये .
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