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दहेज़ मृत्यु क्या है जानिए | Dahej mrityu | Ipc in hindi

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दहेज़ मृत्यु क्या है जानिए | इसके आवश्यक तत्व क्या है जानिए

Dahej mrityu | Ipc in hindi

इस आर्टिकल में मै आपको भारतीय दंड संहिता की बहुत ही महत्वपूर्ण धारा 304-बी (दहेज़ मृत्यु ) के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूँ . आशा करता हूँ की मेरा यह प्रयास आपको पसंद आएगा .तो चलिए जान लेते हैं की-

दहेज़ मृत्यु ( Dahej mrityu ) क्या है और इसके आवश्यक तत्व क्या है ?

सर्वप्रथम आपको बता दें की भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B दहेज़ मृत्यु को परिभाषित करती है.

धारा 304-B ( दहेज़ मृत्यु ) 

1 – जहाँ की किसी स्त्री की –

क – मृत्यु जलने के द्वारा अथवा शारीरिक क्षति द्वारा कारित की गयी हो अथवा सामान्य परिस्थितियों से अन्य घटित हुई हो .

ख – मृत्यु विवाह से सात वर्ष के भीतर की अवधि में गठित हुआ हो .

ग – ऐसा दर्शित किया जाता है की मृत्यु से ठीक पहले उसके पति या पति के नातेदार ने उस स्त्री से क्रूरता की है .

घ – ऐसी क्रूरता अथवा तंग किया जाना दहेज़ के लिए अथवा दहेज़ की मांग के लिए की गयी हो .

ड – वहां ऐसी मृत्यु को दहेज़ मृत्यु कहा जायेगा और ऐसा पति या नातेदार उसकी मृत्यु कारित करने वाला समझा जायेगा .

2 – धारा 304-B ( दहेज़ मृत्यु ) के लिए दंड  — जो कोई दहेज़ मृत्यु कारित करेगा वह कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक हो सकेगी दण्डित किया जायेगा .

भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B (दहेज़ मृत्यु ) की परिभाषा ओरिजनल बुक के अनुसार नीचे पीडीएफ फाइल में देखिये .

[googlepdf url=”http://mpgk.in/wp-content/uploads/2019/01/Screenshot_45.pdf” ]

Dahej mrityu | Ipc in hindi

दहेज़ मृत्यु (Dahej mrityu) किसी विवाहित महिला के आत्महत्या हेतु दुष्प्रेरण के अपराध से किस प्रकार भिन्न है ?

सर्वप्रथम आपको बता दें की साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 113-A विवाहित स्त्री द्वारा आत्महत्या के दुष्प्रेरण के अपराध को परिभाषित करती है.

इसके आवश्यक तत्व इस प्रकार हैं –

१ – प्रश्न यह हो की क्या किसी विवाहित स्त्री द्वारा की गयी आत्महत्या उसके पति या पति के नातेदार के दुष्प्रेरण के कारण हुई थी .

२ – आत्महत्या विवाह के सात वर्ष के भीतर हुई हो .

३ – इस बात का साक्ष्य हो की पति या पति के किसी नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता की थी .

तो न्यायालय ऐसे मामले की अन्य परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए यह उपधारना कर सकेगा , अर्थात न्यायालय ऐसे तथ्य को या तो साबित हुआ मान सकेगा , यदि और जब तक वह नासाबित नहीं किया जाता है , या उसके सबुत की मांग कर सकेगा .

विवाहित महिला के सात वर्ष के भीतर आत्महत्या करने का दुष्प्रेरण अपने आप में कोई नया अपराध का निर्माण नहीं करता न ही कोई अधिकार यह केवल मामले की परिस्थितियों एवं तथ्यों से प्रतीत होता है .

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