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Continuing guarantee in Hindi | चलत प्रत्याभूति क्या होती है

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आज के इस आर्टिकल में मै आपको “Continuing guarantee या चलत प्रत्याभूति क्या होती है  , यह बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए चलत प्रत्याभूति के बारे में विस्तार से जानते हैं ।

Continuing guarantee meaning

इस शब्द का अर्थ चलत प्रत्याभूति होता है । जिसकी परिभाषा भारतीय संविदा अधिनियम की धारा – 129 में दी हुई है .

What is Continuing guarantee | चलत प्रत्याभूति क्या होती है ?

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 129 चलत प्रत्याभूति की निम्नलिखित परिभाषा देती है –

” ऐसी प्रत्याभूति जिसका विस्तार संव्यवहारों की किसी आवली पर हो चलत प्रत्याभूति कहलाती है। “

कोई प्रत्याभूति या तो साधारण हो सकती है या फिर चलत।

साधारण प्रत्याभूति में प्रतिभू केवल एक संव्यवहार विशेष के लिये दायित्वाधीन होता है ,जबकि चलत प्रत्याभूति में प्रतिभू संव्यवहारों की एक आवली अर्थात श्रृंखला के लिये दायित्वाधीन होता है .

कोई प्रत्याभूति चलत है या साधारण, इस बात का अवधारण संव्यवहार की प्रकृति, पक्षकारों की स्थिति एवं परवती परिस्थितियों के आधार पर किया जाता है।

Continuing guarantee example in Hindi

(क) ‘क’ इस बात का प्रतिफलस्वरूप कि ‘ख’ अपनी जमींदारी के भाटकों का संग्रह करने के लिए ‘ग’ को नौकर रखेगा, ‘ग’ द्वारा उन भाटकों के सम्यक् संग्रह और संदाय के लिए 5000 रुपये की रकम तक उत्तरदायी होने का ‘ख’ को वचन देता है। यह चलत प्रत्याभूति है।

(ख) ‘क’ एक चाय के व्यापारी ‘ख’ को, उस चाय के लिए, जिसका वह ‘ग’ को समय-समय पर प्रदाय करे, 100 पौण्ड तक की रकम का संदाय करने की प्रत्याभूति देता है। ‘ग’ को ‘ख’ उपर्युक्त 100 पौण्ड से अधिक मूल्य की चाय का प्रदाय करता है और ‘ग’ उसके लिए ‘ख’ को संदाय कर देता है। तत्पश्चात् ‘ग’ को ‘ख’ 200 पौण्ड मूल्य की चाय का प्रदाय करता है। ‘ग’संदाय करने में असफल रहता है। ‘क’ द्वारा की गई प्रत्याभूति चलत प्रत्याभूति थी और तद्नुसार वह ‘ख’ के प्रति 100 पौण्ड तक का दायी है।

(ग) ‘ख’ द्वारा ‘ग’ को परिदत्त किए जाने वाले आटे के पाँच बोरों की कीमत के, जो एक मास में दी जाती है, संदाय के लिए ‘ख’ को ‘क’ प्रत्याभूति देता है। ‘ग’ को ‘ख’ पाँच बोरे परिदत्त करता है। ‘ग’ उनके लिए संदाय कर देता है। ‘ख’ तत्पश्चात् ‘ग’ को चार बोरे देता है, जिसका संदाय ‘ग’ नहीं करता है। ‘क’ द्वारा दी गई प्रत्याभूति चलत प्रत्याभूति नहीं थी और इसीलिए वह उन चार बोरों की कीमत के लिए दायी नहीं है।

चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण के उदाहरण

(क) ऐसे विनिमय पत्रों को, जो ‘ग’ के पक्ष में हों,’क’ की प्रार्थना पर ‘ख’ द्वारा मितीकाटे पर भुगतान के प्रतिफलस्वरूप ‘ख’ को ‘क’ ऐसे सब विनिमय-पत्रों पर 5,000 रुपये तक सम्यक् संदाय की प्रत्याभूति बारह मास के लिए देता है। 2.000 रुपये तक के ऐसे विनिमय-पत्रों को, जो ‘ग’ के पक्ष में हैं, ‘ख’ मितीकाटे पर भुगतान करता है, तत्पश्चात तीन मास का अन्त होने पर ‘क’ उस प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण कर लेता है। यह प्रतिसंहरण ‘क’ को ‘ख’ के प्रति किसी भी पश्चातवर्ती मितीकाटे पर पर भुगतान के लिए समस्त दायित्व से उन्मोचित कर देता है, किन्तु ‘ग’ द्वारा व्यतिक्रम होने पर, ‘क’ उन 2,000 रुपयों के लिए ‘ख’ के प्रति दायी है।

(ख) ‘ख’ को ‘क’ 1,000 रुपये तक की यह प्रत्याभूति देता है कि ‘ग’ उन सब विनिमय-पत्रों का, जो ‘ख’ उसके नाम लिखेगा, संदाय करेगा। ‘ग’ के नाम ‘ख’ विनिमय-पत्र लिखता है। ‘ग’ उस विनिमय-पत्र को प्रतिगृहीत करता है। ‘क’ प्रतिसंहरण की सूचना देता है। ‘ग’ उस विनिमय-पत्र को उसके परिपक्व होने पर अनादृत कर देता है। ‘क’ अपनी प्रत्याभूति के अनुसार दायी है।

चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण

चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण तीन अवस्थाओं में हो सकता है –

1 – प्रतिभू द्वारा लेनदार को सूचना देकर – धारा 130 के अनुसार प्रतिभू द्वारा लेनदार को सुचना देकर चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण किया जा सकता है. लेकिन ऐसा प्रतिसंहरण केवल भावी संव्यवहारों तक सीमित है प्रतिभू अपने पूर्व के दायित्वों से इस प्रकार सूचना देकर उन्मोचित नहीं हो सकता।

2 – प्रतिभू की मृत्यु हो जाने पर – धारा 131 के अनुसार किसी प्रत्याभूति संविदा के अभाव में प्रतिभू की मृत्यु हो जाने पर चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण हो जाता है।

प्रतिभू की मृत्यु के बाद पश्चातवर्ती संव्यवहारों के लिये उसके विधिक प्रतिनिधि भी उत्तरदायी नहीं होते।

लेनदार को प्रतिभू की मृत्यु होने की सूचना होना आवश्यक नहीं है।

3 -संविदा के निबंधनों में फेरफार हो जाने पर – धारा 133 के अनुसार संविदा के निबंधनों में फेरफार हो जाने पर भी प्रतिभू का उन्मोचन हो जाता है और प्रत्याभूति का प्रतिसंहरत हो जाता है।

4 – मूलऋणी की निर्मक्ति या उन्मोचन द्वारा- लेनदार व मूलऋणी के बीच ऐसी संविदा से जिससे मूलऋणी निर्मुक्त हो जाता है या लेनदार के कार्य या लोप से जिसका विधिक परिणाम मूलऋण का उन्मोचन हो, प्रतिभू का उन्मोचन हो जाता है .(धारा-134)

यदि आपका ” Continuing guarantee | चलत प्रत्याभूति   से सम्बंधित कोई प्रश्न है तो आप कमेट के माध्यम से हम से पूछ सकते हैं ।

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