आज के इस आर्टिकल में मै आपको “Contingent contract या समाश्रित संविदा किसे कहते हैं , यह बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए समाश्रित संविदा के बारे में विस्तार से जानते हैं ।
Contingent contract meaning
इस शब्द का अर्थ समाश्रित संविदा होता है । जिसकी परिभाषा भारतीय संविदा अधिनियम की धारा – 31 में दी हुई है ।
What is contingent contract ? | समाश्रित संविदा किसे कहते हैं ?
भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 31 समाश्रित संविदा की निम्नलिखित परिभाषा देती है –
” समाश्रित संविदा वह संबिदा है जो ऐसी संविदा से साम्पश्विक किसी घटना के होने या न होने पर ही किसी बात को करने या न करने के लिए हो।”
उदहारण – ‘ख’ से ‘क’ संविदा करता है कि यदि ‘ख’ का गृह जल जाए तो वह ‘ख’ को 10,000 रुपये देगा। यह समाश्रित संविदा है।
समाश्रित संविदा के लिए आवश्यक शर्ते
कोई संविदा तब तक समाश्रित संविदा कर होती है जब तक निम्नलिखित शर्ते पूरी नहीं होती –
(1) पक्षकारों ने कोई कार्य करने अथवा न करने की संविदा की हो।
(2) ऐसा किसी घटना के घटित होने या घटित न होने पर आधारित हो, और
(3) घटना संविदा की साम्पाश्विक हो। (संविदा से साम्पाविक का अभिप्राय घटना का। संविदा के प्रतिफल का भाग नहीं होना अपितु उससे स्वतंत्र होना है।)
(Contingent contract) समाश्रित संविदा का प्रवर्तन
निम्नलिखित परिस्थितियों में समाश्रित संविदा प्रवर्तित कराई जा सकती है –
(1) घटना के घटित होने पर समाश्रित संविदा (धारा-32)– अनिश्चित भावी घटना के घटित होने पर आश्रित संविदा का प्रवर्तन उस घटना के घट जाने पर ही कराया जा सकता है। यदि ऐसी घटना का घटित होना असम्भव हो जाय तो ऐसी संविदायें शून्य हो जाती है। उदाहरणार्थ –
ख से क संविदा करता है कि यदि ग के मरने के पश्चात क जीवित रहा तो वह ख का घोड़ा खरीद लेगा। इस संविदा का प्रवर्तन तभी कराया जा सकेगा जब क के जीवन काल में ‘ग’ मर जाया
(2) घटना के घटित न होने पर समाश्रित संविदा (धारा-33)– अनिश्चित भावी घटना के घटित न होने पर समाश्रित संविदा का प्रवर्तन घटना का घटित होना असम्भव हो जाने पर ही कराया जा सकता है इसके पहले नहीं।
उदाहरण – क करार करता हकि यदि अमुख पोत वापस न आए तो वह ख को एक धनराशी देगा . वह पोत डूब जाता है। सविदा का प्रवर्तन पोत के डूब जाने पर कराया जा सकता है।
(3) घटना के नियत समय के अंदर घटित न होने पर समाश्रित संविदा (धारा-35 (पैरा-2))- विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना के किसी नियत समय के भीतर घटित न होने पर समाश्रित प्रवर्तन निम्नलिखित परिस्थितियों में कराया जा सकता है।
क – जब वह नियत समय समाप्त हो गया हो और घटना घटित न हुई हो, अथवा
ख -उस नियत समय की समाप्ति के पूर्व यह निश्चित हो गया हो कि ऐसी घटना घटित नहीं होगी।
कब समाश्रित सविदा शून्य हो जाती है
निम्न परिस्थितियों में समाश्रित संविदा, शून्य हो जाती है –
1 – धारा 32 के अनुसार अनिश्चित भावी घटना के घटित होने पर समाश्रित संविदा घटना के में क्या असम्भव हो जाने पर शून्य हो जाती है।
2 – धारा 35 के अनुसार किसी विनिर्दिष्ट घटना के किसी नियत समय के भीतर घटित होने पर समाश्रित संविदा निम्नलिखित परिस्थितियों में शून्य हो जाती है-
क – जब उस नियत समय की समाप्ति पर ऐसी घटना न घटित हो।
ख – यदि इस नियत समय के पूर्व ऐसी घटना असम्भव हो जाय।
3- धारा 36 के अनुसार ऐसी समाश्रित संविदा जो किसी असम्भव घटना के घटित होने पर ही कोई कार्य करने या न करने के लिए हो शून्य है, चाहे घटना की असंभवता करार के पक्षकारों को उस त समय ज्ञात थी या नहीं जब करार किया गया था।
समाश्रित संविदा और पंद्यम के तौर करार (बाजी) की संविदा में अंतर
1- संविदा की सम्पाश्विक घटना के घटने पर किसी कार्य को करने या न करने की संविदा समाश्रित संविदा कहलाती है। जबकि अनिश्चित घटना के निश्चित हो जाने पर धन या मूल्यवान वस्तु दने की संविदा बाजी की संविदा कहलाती है।
2 – सामान्यत: समाश्रित संविदायें प्रवर्तन योग्य होती है परंतु कुछ परिस्थितियों में शून्य भी है जबकि बाजी के तौर पर की गई संविदाएँ सदैव शून्य होती है।
3 – प्रवर्तनशील समाश्रित संविदा को लागू करने के लिए पक्षकार वाद ला सकते हैं जबकि नाक तौर पर की गई संविदा के पक्षकार बाजी में जीती हुई रकम के लिये वाद नहीं ला सकते है।
4 – समाश्रित संविदा में अनिश्चित घटना केवल भविष्यकालीन हो सकती है जबकि बाजी के तौर पर की गई संविदा में अनिश्चित घटना भूत, भविष्य या वर्तमान काल किसी की भी हो सकती है।
5 – सभी बाजी की संविदायें समाश्रित संविदायें है परंतु समाश्रित संविदायें बाजी की संविदाये नहीं है।
यदि आपका ” Contingent contract | समाश्रित संविदा “ से सम्बंधित कोई प्रश्न है तो आप कमेट के माध्यम से हम से पूछ सकते हैं ।
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