आज के इस आर्टिकल में मै आपको “दहेज का पत्नी या उसके वारिसों के फायदे के लिए होना | दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 6 क्या है | Section 6 Dowry prohibition act in Hindi | Section 6 of Dowry prohibition act | धारा 6 दहेज प्रतिषेध अधिनियम | Dowry to be for the benefit of the wife or her heirs” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 6 | Section 6 of Dowry prohibition act
[ Dowry prohibition act Sec. 6 in Hindi ] –
दहेज का पत्नी या उसके वारिसों के फायदे के लिए होना—
(1) जहाँ कोई दहेज ऐसी स्त्री से भिन्न, जिसके विवाह के संबंध में वह दिया गया है, किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया जाता है, वहां वह व्यक्ति, उस दहेज को,
(क) यदि वह दहेज विवाह से पूर्व प्राप्त किया गया था तो विवाह की तारीख के पश्चात् [तीन मास] के भीतर ; या
(ख) यह वह दहेज विवाह के समय या उसके पश्चात् प्राप्त किया गया था, तो उसकी प्राप्ति की तारीख के पश्चात् तीन मास] के भीतर; या
(ग) यदि वह उस समय जब स्त्री अवयस्क थी तब प्राप्त किया गया था तो उसके अठारह वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात् [तीन मास] के भीतर, स्त्री को अन्तरित कर देगा और ऐसे अन्तरण तक उसे न्यास के रूप में स्त्री के फायदे के लिए धारण करेगा।
*(2) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) द्वारा अपेक्षित किसी सम्पत्ति का, उसके लिए विनिर्दिष्ट परिसीमा काल के भीतर गया उपधारा (3) द्वारा अपेक्षित] अन्तरण करने में असमर्थ रहेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, [जो पांच हजार रुपए से कम का नहीं होगा किन्तु दस हजार रुपए तक का हो सकेगा] या दोनों से, दण्डनीय होगा।]
(3) जहां उपधारा (1) के अधीन किसी सम्पत्ति के लिए हकदार स्त्री की उसे प्राप्त करने के पूर्व मुत्यु हो जाती है, वह स्त्री के वारिस उसे तत्समय धारण करने वाले व्यक्ति से दावा करने के हकदार होंगे :
परन्तु जहां ऐसी स्त्री की मृत्यु उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर प्राकृतिक कारणों से अन्यथा हो जाती है वहां ऐसी संपत्ति, –
(क) यदि कोई संतान नहीं है तो उसके माता-पिता को अंतरित की जाएगी. या
(ख) यदि उसकी संतान है तो उसकी ऐसी संतान को अंतरित की जाएगी और ऐसे अन्तरण तक ऐसी संतान के लिए न्यास के रूप में धारण की जाएगी।]
(3क) जहां उपधारा (1) [या उपधारा (3)] द्वारा अपेक्षित सम्पत्ति का अन्तरण करने में असफल रहने के लिए, उपधारा (2) के अधीन सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति ने, उस उपधारा के अधीन उसके सिद्धदोष ठहराए जाने के पूर्व, ऐसी सम्पत्ति का, उसके लिए हकदार स्त्री को या, यथास्थिति, [उसके वारिसों, माता-पिता या संतान] को अन्तरण नहीं किया है वहाँ न्यायालय, उस उपधारा के अधीन दण्ड अधिनिर्णीत करने के अतिरिक्त, लिखित आदेश द्वारा, यह निदेश देगा कि ऐसा व्यक्ति, ऐसी संपत्ति का, यथास्थिति, ऐसी स्त्री या उसके वारियों, माता-पिता या संतान] को ऐसी अवधि के भीतर जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, अन्तरण करे और यदि ऐसा व्यक्ति ऐसे निदेश का इस प्रकार विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर अनुपालन करने में असफल रहेगा तो संपत्ति के मूल्य के बराबर रकम उससे ऐसे वसूल की जा सकेगी मानो वह ऐसे न्यायालय द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो और उसका, यथास्थिति, उस स्त्री या उसके वारिसों, माता-पिता या संतान] को संदाय किया जा सकेगा।]
(4) इस धारा की कोई बात धारा 3 या धारा 4 के उपबंधों पर प्रभाव नहीं डालेगी।
धारा 6 Dowry prohibition act
[ Dowry prohibition act Sec. 6 in English ] –
“ Dowry to be for the benefit of the wife or her heirs”–
(1) Where any dowry is received by any person other than the woman in connection with whose marriage it is given, that person shall transfer it to the woman— —(1) Where any dowry is received by any person other than the woman in connection with whose marriage it is given, that person shall transfer it to the woman—”
(3) Where the woman entitled to any property under sub-section (1) dies before receiving it, the heirs of the woman shall be entitled to claim it from the person holding it for the time being: 3[Provided that where such woman dies within seven years of her marriage, otherwise than due to natural causes, such property shall,— 2[Provided that where such woman dies within seven years of her marriage, otherwise than due to natural causes, such property shall,—”
धारा 6 Dowry prohibition act
दहेज प्रतिषेध अधिनियम
Dowry prohibition act
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