आज के इस आर्टिकल में मै आपको “अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 क्या है | section 437 CrPC in Hindi | Section 437 in The Code Of Criminal Procedure | CrPC Section 437 | When bail may be taken in case of non- bailable offence ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 | Section 437 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 437 in Hindi ] –
अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी-
(1) जब कोई व्यक्ति, जिस पर अजामनतीय अपराध का अभियोग है या जिस पर यह संदेह है कि उसने अजमानतीय अपराध किया है. पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है या उच्च न्यायालय अथवा सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है, किन्तु
(1) यदि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होते हैं कि ऐसा व्यक्ति मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का दोषी है तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा;
(ii) यदि ऐसा अपराध कोई संज्ञेय अपराध है और ऐसा व्यक्ति मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किया गया है, या वह ‘तीन वर्ष या उससे अधिक के, किन्तु सात वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय किसी संज्ञेय अपराध] के लिए दो या अधिक अवसरों पर पहले दोषसिद्ध किया किया गया है तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा:
परन्तु न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि खंड (i) या खंड (ii) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाए यदि ऐसा व्यक्ति, सोलह वर्ष से कम आयु का है या कोई स्त्री या कोई रोगी या शिथिलांग व्यक्ति है :
परन्तु यह और कि न्यायालय यह भी निदेश दे सकेगा कि खंड (i) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाए, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि किसी अन्य विशेष कारण से ऐसा करना न्यायोचित तथा ठीक है :
परन्तु यह और भी कि केवल यह बात कि अभियुक्त की आवश्यकता, अन्वेषण में साक्षियों द्वारा पहचाने जाने के लिए हो सकती है, जमानत मंजूर करने से इनकार करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं होगी, यदि वह अन्यथा जमानत पर छोड़ दिए जाने के लिए हकदार है और वह वचन देता है कि वे ऐसे निदेशों का, जो न्यायालय द्वारा दिए जाएं, अनुपालन करेगा:]
परन्तु यह भी कि किसी भी व्यक्ति को, यदि उस द्वारा किया गया अभिकथित अपराध मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष अथवा उससे अधिक के कारावास से दंडनीय है तो लोक अभियोजक को सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना इस उपधारा के अधीन न्यायालय द्वारा जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा।]
(2) यदि ऐसे अधिकारी या न्यायालय को, यथास्थिति, अन्वेषण, जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में यह प्रतीत होता है कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार नहीं है कि अभियुक्त ने अजमानतीय अपराध किया है किन्तु उसके दोषी होने के बारे में और जांच करने के लिए पर्याप्त आधार है तो अभियुक्त धारा 446क के उपबंधों के अधीन रहते हुए और ऐसी जांच लंबित रहने तक] जमानत पर, या ऐसे अधिकारी या न्यायालय के स्वविवेकानुसार, इसमें इसके पश्चात् उपबंधित प्रकार से अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभुओं रहित बंधपत्र निष्पादित करने पर छोड़ दिया जाएगा।
(3) जब कोई व्यक्ति, जिस पर ऐसे कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की या उससे अधिक की है, दंडनीय कोई अपराध या भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 6, अध्याय 16 या अध्याय 17 के अधीन कोई अपराध करने या ऐसे किसी अपराध का दुप्रेरण या षडयंत्र या प्रयत्न करने का अभियोग या संदेह है. उपधारा (1) के अधीन जमानत पर छोड़ा जाता है तो न्यायालय यह शर्त अधिरोपित करेगा:
(क) कि ऐसा व्यक्ति इस अध्याय के अधीन निष्पादित बंधपत्र की शर्तों के अनुसार हाजिर होगा; (ख) कि ऐसा व्यक्ति उस अपराध जैसा, जिसको करने का उस पर अभियोग या संदेह है, कोई अपराध नहीं करेगा; और
(ग) कि ऐसा व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा या साक्ष्य
को नहीं बिगाड़ेगा, और न्याय के हित में ऐसी अन्य शर्ते, जिसे वह ठीक समझे, भी अधिरोपित कर सकेगा।]
(4) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर किसी व्यक्ति को छोड़ने वाला अधिकारी या न्यायालय ऐसा करने के अपने ‘[कारणों या विशेष कारणों को लेखबद्ध करेगा।
(5) यदि कोई न्यायालय, जिसने किसी व्यक्ति को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर छोड़ा है, ऐसा करना आवश्यक समझता है तो ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।
(6) यदि मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में ऐसे व्यक्ति का विचारण, जो किसी अजमानतीय अपराध का अभियुक्त है, उस मामले में साक्ष्य देने के लिए नियत प्रथम तारीख के साठ दिन की अवधि के अन्दर पूरा नहीं हो जाता है तो, यदि ऐसा व्यक्ति उक्त सम्पूर्ण अवधि के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो, जब तक ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे मजिस्ट्रेट अन्यथा निदेश न दे वह मजिस्ट्रेट की समाधानप्रद जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।
(7) यदि अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के समाप्त हो जाने के पश्चात् और निर्णय दिए जाने के पूर्व किसी समय न्यायालय की यह राय है कि यह विश्वास करने के उचित आधार हैं कि अभियुक्त किसी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और अभियुक्त अभिरक्षा में है तो वह अभियुक्त को, निर्णय सुनने के लिए अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभुओं रहित बंधपत्र उसके द्वारा निष्पादित किए जाने पर छोड़ देगा।