आज के इस आर्टिकल में मै आपको “मामलों और अपीलों को अन्तरित करने की उच्च न्यायालय की शक्ति | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 407 क्या है | section 407 CrPC in Hindi | Section 407 in The Code Of Criminal Procedure | CrPC Section 407 | Power of High Court to transfer cases and appeals ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 407 | Section 407 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 407 in Hindi ] –
मामलों और अपीलों को अन्तरित करने की उच्च न्यायालय की शक्ति–
(1) जब कभी उच्च न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाता है कि
(क) उसके अधीनस्थ किसी दंड न्यायालय में ऋजु और पक्षपातरहित जांच या विचारण न हो सकेगा ; अथवा (ख) किसी असाधारणतः कठिन विधि प्रश्न के उठने की संभाव्यता है ; अथवा
(ग) इस धारा के अधीन आदेश इस संहिता के किसी उपबंध द्वारा अपेक्षित है, या पक्षकारों या साक्षियों के लिए साधारण सुविधाप्रद होगा, या न्याय के उद्देश्यों के लिए समीचीन है, तब वह आदेश दे सकेगा कि
(1) किसी अपराध की जांच या विचारण ऐसे किसी न्यायालय द्वारा किया जाए जो धारा 177 से 185 तक के (जिनके अन्तर्गत ये दोनों धाराएं भी है) अधीन तो अर्हित नहीं है किन्तु ऐसे अपराध की जांच या विचारण करने के लिए अन्यथा सक्षम है।
(ii) कोई विशिष्ट मामला या अपील या मामलों या अपीलों का वर्ग उसके प्राधिकार के अधीनस्थ किसी दंड न्यायालय से ऐसे समान वरिष्ठ अधिकारिता वाले किसी अन्य दंड न्यायालय को अंतरित कर दिया जाए;
(iii) कोई विशिष्ट मामला सेशन न्यायालय को विचारणार्थ सुपुर्द कर दिया जाए ; अथवा (iv) कोई विशिष्ट मामला या अपील स्वयं उसको अन्तरित कर दी जाए, और उसका विचारण उसके समक्ष
किया जाए।
(2) उच्च न्यायालय निचले न्यायालय की रिपोर्ट पर, या हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर या स्वप्रेरणा पर कार्यवाही कर सकता है:
परन्तु किसी मामले को एक ही सेशन खंड के एक दंड न्यायालय से दूसरे दंड न्यायालय को अन्तरित करने के लिए आवेदन उच्च न्यायालय से तभी किया जाएगा जब ऐसा अन्तरण करने के लिए आवेदन सेशन न्यायाधीश को कर दिया गया है और उसके द्वारा नामंजूर कर दिया गया है।
(3) उपधारा (1) के अधीन आदेश के लिए प्रत्येक आवेदन समावेदन द्वारा किया जाएगा, जो उस दशा के सिवाय जब आवेदक राज्य का महाधिववक्ता हो, शपथपत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित होगा।
(4) जब ऐसा आवेदन कोई अभियुक्त व्यक्ति करता है, तब उच्च न्यायालय उसे निदेश दे सकता है कि वह किसी प्रतिकर के संदाय के लिए, जो उच्च न्यायालय उपधारा (7) के अधीन अधिनिर्णीत करे, प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करे।
(5) ऐसा आवेदन करने वाला प्रत्येक अभियुक्त व्यक्ति लोक अभियोजक को आवेदन की लिखित सूचना उन आधारों की प्रतिलिपि के सहित देगा जिन पर वह किया गया है, और आवेदन के गुणागुण पर तब तक कोई आदेश न किया जाएगा जब तक ऐसी सूचना के दिए जाने और आवेदन की सुनवाई के बीच कम से कम चौबीस घंटे न बीत गए हों।
(6) जहां आवेदन किसी अधीनस्थ न्यायालय से कोई मामला या अपील अंतरित करने के लिए है, वहां यदि उच्च न्यायालय का समाधान हो जाता है कि ऐसा करना न्याय के हित में आवश्यक है, तो वह आदेश दे सकता है कि जब तक आवेदन का निपटारा न हो जाए तब तक के लिए अधीनस्थ न्यायालय की कार्यवाहियां, ऐसे निबंधनों पर, जिन्हें अधिरोपित करना उच्च न्यायालय ठीक समझे, रोक दी जाएंगी:
परन्तु ऐसी रोक धारा 309 के अधीन प्रतिप्रेषण की अधीनस्थ न्यायालयों की शक्ति पर प्रभाव न डालेगी।
(7) जहां उपधारा (1) के अधीन आदेश देने के लिए आवेदन खारिज कर दिया जाता है वहां, यदि उच्च न्यायालय की यह राय है कि आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला था तो वह आवेदक को आदेश दे सकता है कि वह एक हजार रुपए से अनधिक इतनी राशि, जितनी वह न्यायालय उस मामले की परिस्थितियों में समुचित समझे, प्रतिकर के तौर पर उस व्यक्ति को दे जिसने आवेदन का विरोध किया था।
(8) जब उच्च न्यायालय किसी न्यायालय से किसी मामले का अन्तरण अपने समक्ष विचारण करने के लिए उपधारा (1) के अधीन आदेश देता है तब वह ऐसे विचारण में उसी प्रक्रिया का अनुपालन करेगा जिस मामले का ऐसा अन्तरण न किए जाने की दशा में वह न्यायालय करता।
(9) इस धारा की कोई बात धारा 197 के अधीन सरकार के किसी आदेश पर प्रभाव डालने वाली न समझी जाएगी।
धारा 407 CrPC
[ CrPC Sec. 407 in English ] –
“Power of High Court to transfer cases and appeals ”–
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