आज के इस आर्टिकल में मै आपको “नातेदार या मित्र की देख-रेख के लिए पागल का सौंपा जाना | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 340 क्या है | section 340 CrPC in Hindi | Section 340 in The Code Of Criminal Procedure | CrPC Section 340 | Procedure in cases mentioned in section 195 ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 340 | Section 340 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 340 in Hindi ] –
धारा 195 में वर्णित मामलों में प्रक्रिया–
(1) जब किसी न्यायालय की, उससे इस निमित्त किए गए आवेदन पर या अन्यथा. यह राय है कि न्याय के हित में यह समीचीन है कि धारा 195 की उपधारा (1) के बंड (ख) में निर्दिष्ट किसी अपराध की, जो उसे, यथास्थिति, उस न्यायालय की कार्यवाही में या उसके संबंध में अथवा उस न्यायालय की कार्यवाही में पेश की गई या साक्ष्य में दी गई दस्तावेज के बारे में किया हुआ प्रतीत होता है, जांच की जानी चाहिए तब ऐसा न्यायालय ऐसी प्रारंभिक जांच के पश्चात् यदि कोई हो, जैसी वह आवश्यक समझे,
(क) उस भाव का निष्कर्ष अभिलिखित कर सकता है;
(ख) उसका लिखित परिवाद कर सकता है;
(ग) उसे अधिकारिता रखने वाले प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को भेज सकता है ;
(घ ) ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियुक्त के हाजिर होने के लिए पर्याप्त प्रतिभूति ले सकता है अथवा यदि अभिकथित अपराध अजमानतीय है और न्यायालय ऐसा करना आवश्यक समझता है तो, अभियुक्त को ऐसे मजिस्ट्रेट के पास अभिरक्षा में भेज सकता है; और
(ङ) ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने और साक्ष्य देने के लिए किसी व्यक्ति को आबद्ध कर सकता है।
(2) किसी अपराध के बारे में न्यायालय को उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग, ऐसे मामले में जिसमें उस न्यायालय ने उपधारा (1) के अधीन उस अपराध के बारे में न तो परिवाद किया है और न ऐसे परिवाद के किए जाने के लिए आवेदन को नामंजूर किया है, उस न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसके ऐसा पूर्वकथित न्यायालय धारा 195 की उपधारा (4) के अर्थ में अधीनस्थ है।
(3) इस धारा के अधीन किए गए परिवाद पर हस्ताक्षर,
(क) जहां परिवाद करने वाला न्यायालय उच्च न्यायालय है वहां उस न्यायालय के ऐसे अधिकारी द्वारा किए जाएंगे, जिसे वह न्यायालय नियुक्त करे;
(ख) किसी अन्य मामले में, न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा या न्यायालय के ऐसे अधिकारी द्वारा, जिसे न्यायालय इस निमित्त लिखित में प्राधिकृत करे, किए जाएंगे।]
(4) इस धारा में “न्यायालय का वही अर्थ है जो धारा 195 में है।