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शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा | Private defence | Ipc 96

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शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा | Private defence | Ipc 96

Private defence | Ipc 96

विधि यह अपेक्षा करती है की यदि किसी व्यक्ति पर आक्रमण किया जाता है या उसकी संपत्ति को क्षति पहुँचाया जाये तो वह आक्रमण से अपनी तथा अपनी संपत्ति की सुरक्षा करे . और इस प्रकार सुरक्षा करने में यदि आक्रमणकारी को कोई अपहानि कारित होती है तो विधि उसे संरक्षण प्रदान करती है .

भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106 में इस बारे में उपबंध किया गया है .

धारा 96 के अनुसार – कोई बात अपराध नहीं है जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में किया जाये .

धारा 97 इसको और अधिक स्पष्ट करती है की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार स्वयं के शरीर व संपत्ति के साथ-साथ किसी अन्य व्यक्ति के शरीर एवं संपत्ति के विरुद्ध भी प्राप्त है . धारा 97 को दो भागो में बांटा गया है –

पहले भाग के अनुसार – ” मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने तथा किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार हर व्यक्ति को है ”

दुसरे भाग संपत्ति के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा को उपबंधित करता है .

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कब शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधीन मृत्यु कारित की जा सकती है ?

भारतीय दंड संहिता की धारा 100 में उन परिस्थितियों को वर्णित किया गया है जब शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार में मृत्यु कारित की जा सकती है .

धारा 100 के अनुसार – धारा 99 के उपबंधो के अधीन रहते हुए हमलावर की स्वेच्छया मृत्यु तक कारित की जा सकती है , यदि अपराध निम्न भाँती का है –

१ – ऐसा हमला जिसमे युक्तियुक्त रूप से आशंका कारित हो की अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा .

२ – घोर उपहति होगा

३ – बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला

४ – प्रकृति विरुद्ध काम -तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया हमला

५ – व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला

६ – ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिरोध करने के आशय से किया गया हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से आशंका कारित हो की वह अपने को छुडवाने के लिए लोक अधिकारियो की सहायता प्राप्त नहीं कर पायेगा .

प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध भी प्राप्त होता है जो विधि अनुसार समर्थ व्यक्ति नहीं है

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धारा 98 के अनुसार – प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार निम्न व्यक्तियों के विरुद्ध भी उसी प्रकार होता है जो समर्थ व्यक्तियों के विरुद्ध होता है –

१ – बालकपन , समझ की परिपक्वता का आभाव

२ – विकृत्तचित्त

३ – मत्तता के कारण या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण कार्य की प्रकृति समझने में असमर्थ व्यक्ति

 

कब मृत्यु के अतिरिक्त कोई अन्य अपहानि की जा सकती है ?

धारा 101 उन परिस्थितियों को उपबंधित करती है जब व्यक्ति प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में मृत्यु के अतिरिक्त कोई अन्य अपहानि कर सकता है .

धारा 101 के अनुसार – यदि अपराध धारा 100 में बताई गयी श्रेणी का नहीं है तो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार हमलावर की मृत्यु स्वेच्छया कारित करने तक का नहीं होता है किन्तु इस अधिकार का विस्तार धारा 99 के निर्बंधनो के अधीन हमलावर की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित तक का होता है .

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शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ होना और बने रहना

धारा  102 के अनुसार –  शरीर की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है, जैसे ही अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की आशंका पैदा होती है, चाहे वह अपराध नहीं भी किया गया हो, और वह अधिकार तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है।

 

प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार पर निर्बन्धन

धारा 99 उन निर्बंधनो को उपबंधित करती है जब प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं होता है , ये निम्न है –

१ – लोक सेवक द्वारा किया गया कार्य – लोक सेवक के द्वारा अपने कर्तव्य पालन में किये गये कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं होता है . परन्तु ऐसे कार्य का प्रयत्न –

क – सद्भावनापूर्वक अपने पदाभास में में किया गया हो

ख – मृत्यु या घोर उपहति कारित होने की आशंका उत्पन्न न करता हो

ग – पदीय हैसियत में किया गया हो

ऐसा अधिकार तब भी प्राप्त नहीं होगा जबकि लोकसेवक का कार्य विधि अनुसार सर्वथा न्यायानुमत न भी हो .

२ – लोक सेवक के निर्देशों पर किया गया कार्य – प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार वहां भी प्राप्त नहीं होगा जहाँ कोई कार्य लोक सेवक के निर्देशों पर किया जाये , परन्तु ऐसा कार्य उन्ही परिस्थितियों में ही किया गया हो जो लोक सेवक पर लागू होती है .

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परन्तु कोई व्यक्ति तब तक प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होगा जब तक वह व्यक्ति यह न जनता हो की कार्य करने वाला , लोक सेवक के निर्देशन में कार्य कर रहा है .

३ – जब लोक अधिकारियो से सहायता लेने का समय हो – प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार वहां प्राप्त नहीं होता है जहाँ लोक अधिकारियो से सहायता लेने का समय हो .

४ – प्रतिरक्षा के प्रयोजन से अधिक अपहानि कारित नहीं की जाएगी  – चूँकि प्राइवेट प्रतिरक्षा बदला लेने का अधिकार नहीं है अतः प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक है की उतनी ही अपहानि हमलावर को कारित की जाये जितनी हमले से बचने के लिए आवश्यक है .

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